आज इन्होने दिल्ली में फिर आवाज़ लगाई है
लगता है अब फिर से इलेक्शन की बारी आई है
वही हाथ है वही कमल है
झाड़ू ने भी फिर किस्मत आजमाई है
शौक से देखो दिल्ली वालो
ये कुर्सी की लड़ाई है
देश के दुश्मन को हम मौत की नींद सुला देंगे
रंग मंच की दुनिया का ये खेल भी निराला है
ऊपर से नीचे तक पूरा ही घोटाला है
छोटी सी बच्ची
को भी इज्जत बचानी पड़ती है
घुट घुट के ही जीती है वो घुट घुट के ही मरती है
रातो के सन्नाटो ने फिर फिर वेहशीपना
दिखाया है
पूछो इनसे दिल्ली वालो कैसा अत्याचार मिटाया है
पैसे की हम बात करें पड़े सड़
रहा तिजोरी में
पीकर पानी सो जाते हैं कई भूखे मजबूरी में
शान से रहना शान से जीना इन अमीरो की बाते हैं
भूख गरीबी और प्रताड़ना इनकी हमको सौगाते हैं
अब फैसला हमारा होगा अब हमारी बारी हैं
तुम्हारे खोखले घोषणापत्रों में रहती कितनी सचाई हैं
सोच लो फिर से अरे नेताओ इसमें तुम्हारी भलाई हैं
ये जनता हैं भारत की बहुत धोखे हमने खाए हैं
सरे भ्रष्टाचारी अब तक सत्ता
पर बैठाये हैं
सदाबहार हैं कमल यहाँ अभी इनकी ही धूम हैं
तब तक सरकार तुम्हारी है जब तक देशभक्ति का जूनून हैं
मत भूलो तुम सब
दस सालो की पार्टी ने भी दर दर की ठोकर खायी है
सोच समझ के वादे करना इसमें तुम्हारी भलाई है
झाड़ू वाले समाज सेवियों को ये बात बतानी है
छोड़ के जाना राज तख़्त को सबसे बड़ी नादानी है
अगर हटना था ही पीछे तो आगे हाथ बढ़ाया क्यों
स्वछ नहीं किया देश तो झाड़ू हाथ उठाया क्यों
फिर आये मैदान – ए
- जंग में फिर से माहौल बनाया है
फिर से चुनाव लड़ने का थोड़ा और खर्च उठाया है
भले फिर इस बार भी तुम सब
, मुकर जाओ अपने वादो से
न बदलेगी दिल्ली की जनता
, अब अपने इरादो से
अत्याचार मिटने की जो अब
, हम सबने ठानी है
भोली भाली जनता समझना
, अब तुम्हारी नादानी है
हाथ मिले या कमल खिले या
, झाड़ू दिखे गलियारों में
एक बात हम कह देते हैं
, खुले खुले विचारो में
सब ठीक रहा तो सज्जन हैं हम
, शराफत से बात मनानी हैं
बदले जो तुम अबकी बार फिर तुम सबकी शामत आनी है
दिल्ली वाले तुम
भूल न जाना
, जो पिछले सपने वादे थे
इस बार घोषणापत्रों में उनके दाम पहले से आधे थे
मुफ्त में ला दो चीजे तो बोलो
, ये पैसा कहा छुपाया था
एक भूखे को खाने को जब
, तुमने खून के आंसू रुलाया था
तब क्यों न लाए पानी बिजली
, जब दिल्ली वाले मायूस थे
अब आये फिर वादे करने
, तब इतने तुम मदहोश थे
सब सो रहे थे नेत्र मूँद
, जब वो चीखी और
पुकारी थी
घिस - घिस
के पैर लाचार बाप के
, जब बेबस वो फ़क़ीर हुआ
तब याद न आई क्या तुमको कि
, तुम्हारी क्या जिम्मेदारी थी
चलो माफ़ किया जो हुआ आज तक
, सरकार तो बनानी है
दे देंगे वोट हम इस बार भी , यही हर बार की कहानी है
अफ़सोस अगर न बदले तुम
, न तुमसे कुछ उपचार हुआ
पलक झपकते दफ़ा करेंगे हम
, जैसे पिछली बार हुआ
अपराध करने वाले ही सरकार चलाने वाले है
ए दिल्ली को चलाने वाले कर्मठ सदाचारी नेताओ
बदल डालो उन नियमो को जो अपराध बढ़ाने वाले है
देश का
संविधान अगर
हर एक के लिए समान होगा
अपराधी जब अपराधी और हर
नेता गुणवान होगा
जब बहने देश की सुरक्षित रहेंगी आठो पहर
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