Monday 2 February 2015

Delhi Politics


दिल्ली चुनाओ से पहले राजनीती पर एक कटाक्ष

आज  इन्होने  दिल्ली  में  फिर  आवाज़  लगाई  है
लगता  है  अब  फिर  से  इलेक्शन  की  बारी  आई  है
वही  हाथ  है  वही  कमल   है 
झाड़ू  ने  भी  फिर  किस्मत  आजमाई  है 
शौक  से  देखो  दिल्ली  वालो 
ये  कुर्सी  की  लड़ाई  है
सालो  से  हैं  कहते  ये कि  भ्रष्टाचार  मिटा  देंगे
देश  के   दुश्मन  को  हम  मौत  की  नींद  सुला  देंगे
रंग  मंच  की  दुनिया  का  ये  खेल  भी  निराला  है
ऊपर  से  नीचे  तक  पूरा  ही  घोटाला  है
छोटी  सी  बच्ची को  भी  इज्जत  बचानी  पड़ती  है 
घुट  घुट  के  ही  जीती  है  वो  घुट  घुट  के  ही  मरती  है 
रातो  के  सन्नाटो  ने  फिर  फिर  वेहशीपना दिखाया  है
पूछो  इनसे  दिल्ली   वालो   कैसा  अत्याचार  मिटाया  है 
पैसे  की   हम  बात  करें  पड़े  सड़ रहा  तिजोरी  में 
पीकर  पानी  सो  जाते  हैं  कई  भूखे  मजबूरी  में 
शान  से  रहना  शान  से  जीना  इन  अमीरो  की  बाते  हैं 
भूख  गरीबी  और  प्रताड़ना  इनकी  हमको  सौगाते   हैं 
रोज  खुले  आस्मां के नीचे  हमने अपनी  रात  गुजारी  हैं 
अब  फैसला  हमारा  होगा  अब  हमारी  बारी  हैं 
तुम्हारे  खोखले  घोषणापत्रों  में  रहती  कितनी  सचाई  हैं 
सोच  लो  फिर  से  अरे  नेताओ  इसमें  तुम्हारी  भलाई  हैं
ये  जनता  हैं  भारत  की  बहुत  धोखे  हमने  खाए  हैं 
सरे  भ्रष्टाचारी  अब  तक  सत्ता पर बैठाये  हैं 
सदाबहार  हैं  कमल  यहाँ  अभी  इनकी  ही  धूम  हैं 
तब  तक  सरकार  तुम्हारी  है  जब  तक  देशभक्ति   का   जूनून  हैं
मत  भूलो  तुम  सब 
दस  सालो  की  पार्टी  ने  भी  दर  दर  की  ठोकर  खायी  है
सोच  समझ  के  वादे  करना  इसमें  तुम्हारी  भलाई  है
झाड़ू  वाले  समाज  सेवियों   को  ये  बात  बतानी  है 
छोड़  के  जाना  राज  तख़्त  को  सबसे  बड़ी  नादानी  है 
अगर  हटना  था  ही  पीछे  तो  आगे  हाथ  बढ़ाया  क्यों 
स्वछ  नहीं  किया  देश  तो  झाड़ू  हाथ  उठाया  क्यों 
फिर  आये  मैदान  - जंग  में  फिर  से  माहौल  बनाया  है 
फिर  से  चुनाव  लड़ने  का  थोड़ा  और  खर्च  उठाया  है
भले  फिर  इस  बार  भी  तुम  सब , मुकर  जाओ  अपने  वादो  से 
  बदलेगी  दिल्ली   की  जनता , अब  अपने  इरादो  से 
अत्याचार  मिटने  की  जो  अब , हम  सबने  ठानी  है 
भोली  भाली  जनता  समझना , अब  तुम्हारी   नादानी  है 
हाथ  मिले  या  कमल  खिले  या , झाड़ू  दिखे  गलियारों  में  
एक  बात  हम  कह  देते  हैं , खुले  खुले  विचारो  में  
सब  ठीक  रहा  तो  सज्जन  हैं  हम , शराफत   से  बात  मनानी  हैं
बदले  जो  तुम  अबकी  बार  फिर  तुम  सबकी  शामत  आनी   है 
दिल्ली  वाले  तुम भूल    जाना , जो  पिछले  सपने  वादे  थे
इस  बार  घोषणापत्रों  में  उनके  दाम  पहले  से  आधे  थे
मुफ्त  में   ला  दो  चीजे  तो  बोलो , ये  पैसा  कहा  छुपाया  था 
एक  भूखे  को  खाने  को  जब , तुमने  खून  के   आंसू  रुलाया  था 
तब  क्यों    लाए  पानी  बिजली , जब  दिल्ली  वाले  मायूस   थे
अब  आये   फिर  वादे  करने , तब  इतने  तुम  मदहोश  थे
जब - जब  उन  दरिंदो  ने ,  नारी  की   लाज  उतारी  थी 
सब  सो  रहे  थे  नेत्र  मूँद , जब  वो  चीखी  और पुकारी  थी
घिस - घिस  के  पैर  लाचार  बाप  के ,  जब  बेबस  वो  फ़क़ीर  हुआ
तब  याद    आई  क्या  तुमको  कि ,  तुम्हारी  क्या  जिम्मेदारी  थी
चलो  माफ़  किया  जो  हुआ  आज  तक , सरकार  तो  बनानी  है
दे  देंगे  वोट  हम  इस  बार  भी  , यही  हर  बार  की  कहानी  है
अफ़सोस  अगर    बदले  तुम ,   तुमसे  कुछ  उपचार  हुआ
पलक  झपकते  दफ़ा  करेंगे  हम ,  जैसे  पिछली  बार  हुआ
अब  तो  समझो  दिल्ली  वालो , कुछ   तो  नियम   के  लाले  है
अपराध  करने  वाले  ही  सरकार  चलाने  वाले  है 
दिल्ली  को  चलाने  वाले  कर्मठ  सदाचारी  नेताओ
बदल  डालो  उन  नियमो  को  जो  अपराध  बढ़ाने  वाले  है 
देश का  संविधान  अगर हर  एक  के  लिए  समान  होगा
अपराधी  जब  अपराधी  और  हर नेता  गुणवान   होगा
जब  बहने  देश    की  सुरक्षित  रहेंगी  आठो   पहर
तब  मैं कह सकूँगा कि भारत  देश  महान  होगा
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by

Hem Chandra Tiwari
'MHICHA'



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