Wednesday 29 July 2015
Tuesday 28 July 2015
आखरी सलाम कलाम के नाम
क्षुब्द हुआ है देश कही कुछ खो गया है
वीर सपूत जो गहन नींद में सो गया है
हृदय विदारक पीड़ा देकर मन के सूने गलियारों में
छोड़ गया संसार हमारा बस गया चाँद सितारों में
अज तेरा है त्याग गजब है योगदान तेरे ज्ञान का
अपनी खोजो से बदल दिया है तूने ढांचा विज्ञान का
देश को अर्पित तन मन जीवन तूने सच्चा धर्म निभाया है
ए भारत के करम रत्न तुझे हमने शीश झुकाया है
जटिल परिस्तिथि कठिन परिश्रम, पर नियमन उच्च विचारो का
संयम, प्रेरणा और नैतिकता, प्रतिफल है सुसंस्कारों का
धन्य भाग इस भारत के जो तुझ सपूत ने जनम लिया
सद्भाव, निष्ठां और देशभक्ति से तूने राष्ट्रहित में करम किया
अग्नि, नाग, आकाश, पृथ्वी से शान बड़ाई भारत की
सरल जीवन के आदर्शवादी तू मूरत है परमारथ की
भारत माँ के वीर सपूत तुझे पूजूँ फूलो के हार से
आज अमर कलाम देश का चल दिया नश्वर संसार से
अम्बर के अंश्रु धोते धरती, धरती विमुख हुई श्रृंगार से
आज अमर कलाम देश का चल दिया नश्वर संसार से
आज अमर कलाम देश का चल दिया नश्वर संसार से
Monday 27 July 2015
श्याम नाम का ज्ञान
ता ता थैया धिनक धिनक धिन
पंख पसारे मोर ने
चितवन में आकर चित्त चुराया
श्याम मनोहर चोर ने
पंख पसारे मोर ने
चितवन में आकर चित्त चुराया
श्याम मनोहर चोर ने
राधा रानी व्याकुल बैठी
कुञ्ज गली की ओढ़ पर
श्याम मुरारी मिलन न आये
न रात्रि, साँझ न भोर पर
श्याम मुरारी मिलन न आये
न रात्रि, साँझ न भोर पर
रूठी राधा मन कुंठित करके
ये प्रेम राग की तान थी
कान्हा की कोई खबर न आई
राधा रानी परेशान थी
सब जग ढूंढा सब जग खोजा
पग पग राह निहारे
अब तो आजा मेरे गिरधारी
मुरली महोहर वाले
कभी इस पल दौड़े कड़ी धूप में
कभी प्रेम अश्रु बहाये
राधा रानी के सौ जतन पर
कृष्णा न मिलने आये
हुई हताश तो बैठी छण भर
दिल में प्रेम अलख जगाई
रोम -रोम से नेत्र मूँद कर
कान्हा की रटन लगायी
प्रकट हुए वो पल भर में
राधे के अंश्रु पोछे
क्यों न आये मिलने मुझसे
राधा रो-रो पूछे
मैं तुम्हे ढूंढने मेरे कान्हा
वन -वन खोजन आई
रो -रो कर राधिका रानी ने
पूरी बात बताई
भरे मुस्कान होठो पर मोहन
मंद मंद मुस्काये
हाथ बढाकर राधा रानी को
पल भर में गले लगाये
बोले राधे भोली हो तुम
थोड़ी सी अपट अनाड़ी
मैं तो तेरे दिल के कोने में
क्यों ढूंढे बाड़ी बाड़ी
तेरे नैनो की छाँव में राधे
मैं अपनी रात गुजारु
तेरे मन के इस द्वार से पगली
मैं तुझको रोज निहारु
राधे मैं कण-कण बसता हूँ
घर घर में मेरा डेरा
मुझसे ही चलता काल चक्र
मुझसे ही साँझ सवेरा
मैं बसता हूँ हर मन-मंदिर में
प्राणी प्राणी के वेश में
मैं तुझमे तू मुझमे बसती
तू क्यों ढूंढे परिवेश में
फिर काहेतू रोवे राधे
फिर काहे तू शोक मनावे
पल भर में मिल जाऊंगा
जो तू कान्हा कान्हा गावे
पल भर में मिल जाऊंगा
जो तू कान्हा कान्हा गावे
सुन राधा हर्षित भई श्याम नाम का ज्ञान|
रेट आलाप आठो पहर गूंजे चारो धाम||
प्रेम दीप की ज्योत से श्याम तुम्हारे होए |
कष्ट निवारे सब जन के जो प्रेमांकुर को बोये ||
by
Hem Chandra Tiwari
'MHICHA'
Thursday 23 July 2015
ये बेजुबान सरहदें
ये बेजुबान सरहदें
अनचाही, अनकही
वो बातें
जो बाँट जाती हैं जमीन और आसमान
लकीरें खींचती हुई पहाड़ो से गुजरती हुई
नदियों के पानी को बांटती हुई
धरती माँ के गर्भ को चीर जाती हैं
ये बेजुबान सरहदें|
जो बातों ही बातों में
लोगो की बातों का मतलब बदल देती हैं
मानव हृदय को भेदकर
प्यार के बीज सुखाकर
नफ़रत के बीज बो जाती हैं
ये बेजुबान सरहदें|
मैं भी बोल पाता इन सरहदों की भाषा
तो नफरत नहीं प्यार बांटता
दिलों को दिलों से जोड़ता
इन सरहदों को ही मिटा देता
सोचता हूँ, जब ये सरहदें
बदल सकती हैं इंसानियत का मतलब
तो मैं भी तो बदल सकता हूँ
इन सरहदों का मतलब
आख़िरकार ये सरहदें
बेजुबान ही तो हैं
मिट जाएँ ये सरहदें
ये बेजुबान सरहदें|
by
Hem Chandra Tiwari
'MHICHA'
Wednesday 22 July 2015
सूना है आँगन प्यार का
आज फिर मौसम बदल रहा
आगाज़ है रुसवाइयों का
शाम -ए -महफ़िल ख़त्म हुई
साथ है तन्हाइयों का
बिखरे बहार के पत्ते भी
वो फूल भी मुरझा गए
तू छोड़कर चली गयी
सूना है आँगन प्यार का
शाम -ए -महफ़िल ख़त्म हुई
साथ है तन्हाइयों का
बिखरे बहार के पत्ते भी
वो फूल भी मुरझा गए
तू छोड़कर चली गयी
सूना है आँगन प्यार का
जो प्यार की लहर उठी थी
थम सी गयी किनारों में
मैं प्यासा बेसुध पड़ी
तेरे उन्ही ख्यालों में
वो चाँद ना आया फिर मिलने
काले बादल ने घेर लिया
एक तू ही दिलदार थी
क्यों मुझसे मुँह फिर फेर लिया
थम सी गयी किनारों में
मैं प्यासा बेसुध पड़ी
तेरे उन्ही ख्यालों में
वो चाँद ना आया फिर मिलने
काले बादल ने घेर लिया
एक तू ही दिलदार थी
क्यों मुझसे मुँह फिर फेर लिया
पथ भूल गए संसार का
तू रूठ कर चली गयी
सूना है आँगन प्यार का
कोई समझता नहीं कोई समझाना नहीं चाहता
कोई मानता नहीं कोई मनाना नहीं चाहता
कोई समझता नहीं कोई समझाना नहीं चाहता
पूरी दुनिया खड़ी है तबाही के मंजर पर
कोई रुकता नहीं कोई रूकाना नहीं चाहता
पहले भी देखे हैं बहुत से शहर तबाह होते
मिली है सिर्फ मात ही इस नफरत की जंग में
प्यार की ताकत से जीती जा सकती थी जंग
पर क्या करें कोई जीतता नहीं कोई जिताना नहीं चाहता
किसी ने खोएं हैं बेटे किसी की रो रही ममता
किसी के अश्रु टूटे हैं कोई बहाना नहीं चाहता
कहीं तो जल रही इंसानियत नफरत की आग में
कोई बचता नहीं कोई बचाना नहीं चाहता
फिर भी पलट के देखो इतिहास के पन्नो को
जहाँ नफरत की आंधी चली, वहां फिर बसेरा न हुआ
बुझ गए चिराग लौ भी तिलमिला उठी
एक रात ऐसी भी आई फिर सवेरा न हुआ
बना इंसान, दिल से पत्थर, हैवान कर्मो से
कोई चाहे छिपता नहीं कोई छिपाना नहीं चाहता
by
Hem Chandra Tiwari
'MHICHA
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