कोई मानता नहीं कोई मनाना नहीं चाहता
कोई समझता नहीं कोई समझाना नहीं चाहता
पूरी दुनिया खड़ी है तबाही के मंजर पर
कोई रुकता नहीं कोई रूकाना नहीं चाहता
पहले भी देखे हैं बहुत से शहर तबाह होते
मिली है सिर्फ मात ही इस नफरत की जंग में
प्यार की ताकत से जीती जा सकती थी जंग
पर क्या करें कोई जीतता नहीं कोई जिताना नहीं चाहता
किसी ने खोएं हैं बेटे किसी की रो रही ममता
किसी के अश्रु टूटे हैं कोई बहाना नहीं चाहता
कहीं तो जल रही इंसानियत नफरत की आग में
कोई बचता नहीं कोई बचाना नहीं चाहता
फिर भी पलट के देखो इतिहास के पन्नो को
जहाँ नफरत की आंधी चली, वहां फिर बसेरा न हुआ
बुझ गए चिराग लौ भी तिलमिला उठी
एक रात ऐसी भी आई फिर सवेरा न हुआ
बना इंसान, दिल से पत्थर, हैवान कर्मो से
कोई चाहे छिपता नहीं कोई छिपाना नहीं चाहता
by
Hem Chandra Tiwari
'MHICHA
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