Wednesday 22 July 2015

कोई समझता नहीं कोई समझाना नहीं चाहता

 
कोई समझता नहीं कोई समझाना नहीं चाहता
कोई मानता नहीं कोई मनाना नहीं चाहता
कोई समझता नहीं कोई समझाना नहीं चाहता
पूरी दुनिया खड़ी है तबाही के मंजर पर
कोई रुकता नहीं कोई रूकाना नहीं चाहता

पहले भी देखे हैं बहुत से शहर तबाह होते
मिली है सिर्फ मात ही इस नफरत की जंग में
प्यार की ताकत से जीती जा सकती थी जंग
पर क्या करें कोई जीतता नहीं कोई जिताना नहीं चाहता


किसी ने खोएं हैं बेटे किसी की रो रही ममता
किसी के अश्रु टूटे हैं कोई बहाना नहीं चाहता
कहीं तो जल रही इंसानियत नफरत की आग में
कोई बचता नहीं कोई बचाना नहीं चाहता


फिर भी पलट के देखो इतिहास के पन्नो को
जहाँ नफरत की आंधी चली, वहां फिर बसेरा हुआ
बुझ गए चिराग लौ भी तिलमिला उठी
एक रात ऐसी भी आई फिर सवेरा हुआ
बना इंसान, दिल से पत्थर, हैवान कर्मो से
कोई चाहे छिपता नहीं कोई छिपाना नहीं चाहता




by
Hem Chandra Tiwari
'MHICHA

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