Wednesday 22 July 2015

सूना है आँगन प्यार का

आज फिर मौसम बदल रहा
आगाज़ है रुसवाइयों का
शाम -ए -महफ़िल ख़त्म हुई
साथ है तन्हाइयों का
बिखरे बहार के पत्ते भी
वो फूल भी मुरझा गए
तू छोड़कर चली गयी
सूना है आँगन प्यार का


जो प्यार की लहर उठी थी
थम सी गयी किनारों में
मैं प्यासा बेसुध पड़ी 
तेरे उन्ही ख्यालों में 
वो चाँद ना आया फिर मिलने
काले बादल ने घेर लिया
एक तू ही दिलदार थी
क्यों मुझसे मुँह फिर फेर लिया 


मस्त हवा के झोंके भी
पथ भूल गए संसार का
तू रूठ कर चली गयी
सूना है आँगन प्यार का







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