ये बेजुबान सरहदें
अनचाही, अनकही
वो बातें
जो बाँट जाती हैं जमीन और आसमान
लकीरें खींचती हुई पहाड़ो से गुजरती हुई
नदियों के पानी को बांटती हुई
धरती माँ के गर्भ को चीर जाती हैं
ये बेजुबान सरहदें|
जो बातों ही बातों में
लोगो की बातों का मतलब बदल देती हैं
मानव हृदय को भेदकर
प्यार के बीज सुखाकर
नफ़रत के बीज बो जाती हैं
ये बेजुबान सरहदें|
मैं भी बोल पाता इन सरहदों की भाषा
तो नफरत नहीं प्यार बांटता
दिलों को दिलों से जोड़ता
इन सरहदों को ही मिटा देता
सोचता हूँ, जब ये सरहदें
बदल सकती हैं इंसानियत का मतलब
तो मैं भी तो बदल सकता हूँ
इन सरहदों का मतलब
आख़िरकार ये सरहदें
बेजुबान ही तो हैं
मिट जाएँ ये सरहदें
ये बेजुबान सरहदें|
by
Hem Chandra Tiwari
'MHICHA'
No comments:
Post a Comment