Tuesday 21 August 2018

‌सब तेरे खुद के बस में है


‌सब तेरे खुद के बस में है

पुष्प पड़े हों राहों पर या शूल गढ़े हो हर ठोर पर
तुझको तो आखिर चलना ही है, पग अपने संभाल ले

न हो हताश क्यों तू फ़िक्र करे?बादल है प्यास बुझाने को
सब्र कर जरा, तू ठहर यहाँ, थोड़ी तो लंबी सांस ले

स्वप्नों की टूटन से न विचलित हो, फिर से पिरोना सीख इन्हें
ले विजय पताका हाथ अभी, धीरे से तू अपनी बाट ले

दबी हुई क्यों हँसी तेरी रुदते कंठों के बोझ तले? 
अम्बर भी गिरे जमीं पर जो खुलके हँस ले या चीख ले

क्या तूफ़ान बिगाड़ेंगे अब तेरा जब तू खुद मुख़ातिब होता है
‌बाहों में भरले अपने इनको या रौंद डाल तू कदम तले

‌सब खेल क्या फ़तह का है या तीस तुझे कुछ पाने की
‌संघर्ष समेटे आँचल में है, जो मंजिल तेरी हो तुझे मिले

‌तू संघर्ष कर हो कार्यरत, बन निडर, भीरु न बनकर चल
‌है लिए मशाल तू सीने में तो क्यों दीपक की राह चले

‌नहीं छिन रहा चैन तेरा सब भीतर मन का करतब है
‌जो लिया डगर पहचान अभी सब तेरे खुद के बस में है

‌सब तेरे खुद के बस में है

(सर्व अधिकार सुरक्षित, 2018, हेम चंद्र तिवारी)

कई भाई लोग साथ आ रहे हैं, अच्छा लग रहा है, एक नया भारत दिख रहा है। आजाद हिंद के सपनो का अब फिर परचम लहरा है। उन्नति के शिखरों में अब राज्य ह...