Saturday 31 October 2015

मा तेरी बिटिया की अभी एक और कोशिश बाकी है

मा तेरी बिटिया की अभी एक और कोशिश बाकी है
अंधेरी इन रातो में एक लौ जलाना अभी बाकी है
मा तेरी बिटिया की अभी एक और कोशिश बाकी है
खुले इस आसमान में एक पतंग अभी मेरी बाकी है
रेशम की डोर से जोडू उसे ये सपना तेरी लाडली का अभी बाकी है

खुशी के रंगा देखू तेरे इन पलों को
पर तेरे इन पलों को अभी जीतना बाकी है
अंधेरी इन रातो में एक लौ जलाना अभी बाकी है
मा तेरी बिटिया की अभी एक और कोशिश बाकी है

तेरे सपनो को उडान दूँ मैं अपने इन पंखों से
पर इन पंखों की ये खुशनशिबी अभी बाकी है
अंधेरी इन रातो में एक लौ जलाना अभी बाकी है
मा तेरी बिटिया की अभी एक और कोशिश बाकी है

तेरे प्यार में गिर-गिर कर सँभालना सिखा दिया
पर तेरी मंज़िल को चुमू ये दौड अभी बाकी है
अंधेरी इन रातो में एक लौ जलाना अभी बाकी है
मा तेरी बिटिया की अभी एक और कोशिश बाकी है

by
Ravinder Singh Raturi
From Rishikesh, Uttarakhand

मन की आवाज़

मन की आवाज़
एक दीप मेरे मन में जला कोई
एक किरण मेरे मन को भी दिखा कोई
रात काली कितनी भी हो
मेरी भी सुबह होगी ये समझा दे कोई
शैल सी शैल डगर मेरी पर
नभ से ज़्यादा विश्वास कर खुद पर इतना समझा दे कोई
संघर्ष करूँ हर कठिनाई से खड़ा रहूँ हर मोड़ पे
फिर आएगी मंज़िल और चुमूंगा आसमान ये समझा दे कोई
मन को थोड़ा स्थिर रखूं और दिल पर काबू
राह मोड़ लेगी हर कठिनाई भी मेरे पथ से
थोड़ा इतना यकीन रखूं, खड़ा रहूं, साहस करूँ,
अभिलाषा रखूं और बनूँ हिम्मतवाँ
फिर नमन करेगा ये चमन भी,ये समझा दे कोई
by
Ravinder Singh Raturi
From Rishikesh, Uttarakhand

यादों के झरोंखो में

यादों के झरोंखो में


यादों के झरोंखो में एक लौ जला ना पाया
बिखरे पड़े जिंदगी के पन्नों में भी एक खुशी ढूँढ ना पाया

बीते दिन स्कूल में भी एक शरारत कर ना पाया
और मोहल्ले के किसी घर का एक काँच भी तोड़ ना पाया
अट्ठारह वर्ष की उमर में एक फूल ना सूंघ पाया
और ना दोस्तो के संग ही कहीं घूम पाया
यादों के झरोंखो में एक लौ जला ना पाया
बिखरे पड़े जिंदगी के पन्नों में भी एक खुशी ढूँढ ना पाया
वयस्क होने पर वयस्कता का अधिकार भी घर से ना मिल पाया
और जीवन साथी खुद चुनने का मौका भी ना मिल पाया
फूलों की खुश्बू और पेड़ पौधों की ठंडी हवाओं का एहसास भी ना कर पाया
और जिंदगी के पैंसठ बसंतों को भी ना जी पाया
ज़िम्मेदारियों के तले सब जान पाया
पर इस नाज़ुक मन में क्या है ये कभी ना जान पाया
आज मन के तीर में एक प्रश्न तैरा आया
सारी जिंदगी गुजर गयी पर तूने क्या पाया?
यादों के झरोंखो में एक लौ जला ना पाया
बिखरे पड़े जिंदगी के पन्नों में भी एक खुशी ढूँढ ना पाया

by
Ravinder Singh Raturi

From Rishikesh, Uttarakhand


Sunday 18 October 2015

दुनिया बनाने वाले तेरी रज़ा क्‍या थी

35. दुनिया बनाने वाले तेरी रज़ा क्या थी
दुनिया बनाने वाले तेरी रज़ा क्या थी
किसी को रात तो किसी को दिन किया
किसी के सर के उपर छत नहीं तो किसी को महल दिया
कोई धनवान ठुकरा देता है छप्पन भोग
तो किसी को निवाले-निवाले को मोहताज़ किया
- दुनिया बनाने  वाले तू इतना बता
ये दुनिया बनाने की वजह क्‍या थी
दुनिया बनाने वाले तेरी रज़ा क्याथी

कहीं हरा-भरा मैदान तो कहीं सूखा किया
जिन्हें भेजा इस संसार में उन्हे क्यूँ भूखा किया
कुछ को शान से रहते देखा है अपने-अपने घरों में
तो किसी पे रात गुज़ारने की पनाह ना थी
- दुनिया बनाने  वाले तू इतना बता
ये दुनिया बनाने की वजह क्‍या थी
दुनिया बनाने वाले तेरी रज़ा क्या थी

स्वप्निल प्रदेश के गर्भ में आकाश की नीली चादर ओढ़े
देखा है अबोध यहाँ, थोड़े दूध को चिल्लाता है
इंसान को इंसान की फिकर नहीं झूठे दम पर इतरता है
जानने वाली माँ रूठ गयी पर उस अबोध की खता क्या थी
उसे क्यूँ भेजा इस दुनिया में जब उसकी चिंता ना थी
- दुनिया बनाना वाले तू इतना बता
ये दुनिया बनाने की वजह क्‍या थी
दुनिया बनाने वाले तेरी रज़ा क्या थी
                                                                                                                                                               by
Hem Chandra Tiwari
'MHICHA'

Saturday 10 October 2015

मिलती हैं मेरी राहें तेरी राहों में

मिलती हैं मेरी राहें तेरी राहों में



पाऊ खुद को तेरी पनाहों में
मिलती हैं मेरी राहें तेरी राहों में
ये इश्क़ ना होता तो फिर दिल क्यू है रोता
जो प्यार ना होता तो इज़हार क्यू होता
तुझसे मिलने को में बेकरार होता हूँ
जो बात ना हो पाए परेशान होता हूँ
जादू सा कर डाला तेरी अदाओं ने
मिलती हैं मेरी राहें तेरी राहों में

तेरी मीठी बातें कानो में रस घोले
तेरी एक हसी से तो ये दिल अपना गम भूले
जब दिन निकलता है तू सामने होती है
रातो को भी सपनो में मेरे साथ होती है
तुझको ही पाया है मैने फ़िज़ाओं में
मिलती हैं मेरी राहें तेरी राहों में

ये गीत नही शायद इज़हार है मेरा
दुनिया से कह डाला तू प्यार है मेरा
तेरा जिंदगी में आना इकरार है तेरा
तुझमे ही जिंदा मैं, तू संसार है मेरा
याद रखे दुनिया हमको अफ़सानो में
मिलती हैं मेरी राहें तेरी राहों में

पाऊ खुद को तेरी पनाहों में
मिलती हैं मेरी राहें तेरी राहों में

                                                                                                                                                               by
Hem Chandra Tiwari
'MHICHA'

Monday 5 October 2015

जिनमें तू बसीहै और बसीहैं तेरी यादें




जिनमें तू बसीहै और बसीहैं तेरी यादें

समेट कर उन लम्हों को सहेज लूँ दिल में
जिनमें तू बसी है और बसी हैं तेरी यादें
तेरी हर बात जो लिखी किन्हीं कोरे पन्नों पर
समेट कर उन पन्नों को छुपा लूँ अपनी बाहोंमें
जिनमें तू बसी है और बसी हैं तेरी यादें|

लफ़्ज़ों को समेट लूँ और समा लूँ अपने कानों में
जिनमें मेरा इज़हार और तेरा इनकार रहा
रोक लूँ उन आँसुओं को जो दिन-रात गिरे,तुझे पाने को
तन्हाइयों में जो मेरा यार रहा
मुक़द्दर की किताब के पन्नों में एक पन्ना और लिख लूँ
जिसमें तू ही तू हो, तेरा साथ हो और तेरा प्यार हो
तेरे प्यार के गीत सुनाऊं महफ़िल में
जिनमें तू बसी है और बसी हैं तेरी यादें|
by
Hem Chandra Tiwari
'MHICHA'

कई भाई लोग साथ आ रहे हैं, अच्छा लग रहा है, एक नया भारत दिख रहा है। आजाद हिंद के सपनो का अब फिर परचम लहरा है। उन्नति के शिखरों में अब राज्य ह...