यादों के झरोंखो में एक लौ जला ना पाया
बिखरे पड़े जिंदगी के पन्नों में भी एक खुशी ढूँढ ना पाया
बीते दिन स्कूल में भी एक शरारत कर ना पाया
और मोहल्ले के किसी घर का एक काँच भी तोड़ ना पाया
अट्ठारह वर्ष की उमर में एक फूल ना सूंघ पाया
और ना दोस्तो के संग ही कहीं घूम पाया
बीते दिन स्कूल में भी एक शरारत कर ना पाया
और मोहल्ले के किसी घर का एक काँच भी तोड़ ना पाया
अट्ठारह वर्ष की उमर में एक फूल ना सूंघ पाया
और ना दोस्तो के संग ही कहीं घूम पाया
यादों के झरोंखो में एक लौ जला ना पाया
बिखरे पड़े जिंदगी के पन्नों में भी एक खुशी ढूँढ ना पाया
और जीवन साथी खुद चुनने का मौका भी ना मिल पाया
फूलों की खुश्बू और पेड़ पौधों की ठंडी हवाओं का एहसास भी ना कर पाया
और जिंदगी के पैंसठ बसंतों को भी ना जी पाया
ज़िम्मेदारियों के तले सब जान पाया
पर इस नाज़ुक मन में क्या है ये कभी ना जान पाया
आज मन के तीर में एक प्रश्न तैरा आया
सारी जिंदगी गुजर गयी पर तूने क्या पाया?
सारी जिंदगी गुजर गयी पर तूने क्या पाया?
यादों के झरोंखो में एक लौ जला ना पाया
बिखरे पड़े जिंदगी के पन्नों में भी एक खुशी ढूँढ ना पाया
by
Ravinder Singh Raturi
From Rishikesh, Uttarakhand
Ravinder Singh Raturi
From Rishikesh, Uttarakhand
No comments:
Post a Comment