Monday 18 April 2016

भारत माता की जय

प्रिय मित्रों,

यह पत्र मैं व्यक्तिगत तौर पर आप सभी को लिख रहा हूँ। बहुत समय से भीतरी द्वन्द के परिणाम स्वरूप और समाज एवम् देश की दुर्गति देखकर एक ऐसे भयावह परिणाम की कल्पना जो भारत के लोकतंत्र के पूर्णरूपेण नष्टिकरण को दिष्ट करती है, मुझे कंपित कर देती है। काफी सोच-विचार करने के बाद इस विषैले वृक्ष की जङें खोखली करने का विचार आता है जिसकी शाखाएँ विभिन्न रूपों में अशिक्षा, भ्रष्टाचार, अज्ञानता, धार्मिक मतभेद, अमानवीयता, आतंकवाद, गरीबी, सामाजिक गैरजिम्मेदारी आदि के रूप में फैली हुई है। वर्तमान की जरूरत है कि हम इस ओर सोचें और कार्य करे- एक अन्य वृक्ष लगाकर- शिक्षा का, जो एक पूर्ण शिक्षित समाज का निर्माण करके देश की आबो-हवा को शुद्ध करने का प्रयास करे।

हम राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे युवाओं एवं युवतियों का स्वागत करते हैं जो हमारे साथ एक स्वस्थ एवं शिक्षित समाज का स्वप्न देखते हों। क्या आप इस सफर में हमारे साथी बनने को तैयार हैं?

निकल पङे हैं, मातृभूमि!
तेरे वजूद की रक्षा को
हर कोई अब शिक्षित हो
चाहे किसी कौम का बच्चा हो

तूने अब तक पाला है
अब हम स्वकर्म को तत्पर हैं
निज तुझ पर नयौछावर कर
राष्ट्रहित के पथ पर हैं।

आओ चलें स्वपनो को हकीकत बनाने- एक स्वप्निल भारत बनाने।

भारत माता की जय।
वन्दे मातरम्।

हेम चंद्र तिवारी

Saturday 9 April 2016

EDUCATION IS DNA




I don''t know my guilt, my sins, my mistakes
never known my fate or misfortune
crawling under the feets of negligence
I'm not afraid, I know how to grow,
how to rise to enlighten the world
and let the nation bloom
I'm trying to be stronger day by day
As I'm studying

I never cared what you did to me
I'll never ask what you'll do for me
I'm well getting the worms of illiteracy
sucking country's blood
And you're unconscious of poision but
I'm alert as I'm growing among them
But I'm not affected beacause I'm studying..

 BY
Hem Chandra Tiwari
#mhicha

Monday 4 April 2016

क्या देखा परमेश्वर को?

फिरे बहुत हैं इधर-उधर
हर मंदिर में शीश नवाए
पहने टोपी सर पर अपने
मस्ज़िद में दोनो हाथ उठाए

पर क्या पाया अब तक
 और क्या सोचा पाने का
बहती बयार में सब धोया
पर मैल ना धोया मन का

सोचे वो खुश होगा जो रहता है इन जगहों पर
पर क्या सोचा है कभी किकिसे खुश करने चले है हम
और क्यूँ?

बड़े ज्ञानी हैं, सिद्ध पुरुष हैं
सब कुछ के है ग्याता
उसकी करते पैरवी जो
 खुद सबका भाग्यविधाता

सुन कर ही अचंभित हूँ, 
देखूँ कैसे? प्राणी तेरी मूरखता
उसे सौपने चला क्या है?
 जब तेरा कुछ नही लगता
भर दंभ करें सब मनमानी
अपनी-अपनी बात है मनवानी

पर किसे मनाने चले हैं?
कौन सी बाते?
किस परमात्मा की?

वो जो शायद है ही नही
और है तो हम देखे नही,
देखे हैं तो समझे नही और
समझे हैं तो जाने नही

फिर अज्ञानता फैलाने का विचार क्यूँ?





 

""  दोस्ती ''"

ये दोस्ती भी क्या चीज़ है
कोई खास तो कोई अज़ीज़ है
ये रिश्ता ,
कुछ खट्टा कुछ मीठा
फिर भी लज़ीज़ है
कमाल है ज़िन्दगी भी
क्या खेल ये खिलाती है
एक हसी के बदले
 सौ दर्द दे जाती है
रूठने मनाने का
एहसास ही अनूठा है
जिसे मिले उसका नसीब
वर्ना कितनो का साथ छूटा है
आपसी समझ का
है ये अनूठा संगम
दोस्ती ही तो है
जो ले जाये  संग - गम
हो जाये अगर बात कोई
तो आंच न आने देना
रिश्ता है ज़ज़्बातों का
इसे दिल से निभाना ....

BY
VARUN KUMAR MAURYA
CLASS- 11TH
LAKES INTERNATIONAL SCHOOL
BHIMTAL, UTTARAKHAND

कई भाई लोग साथ आ रहे हैं, अच्छा लग रहा है, एक नया भारत दिख रहा है। आजाद हिंद के सपनो का अब फिर परचम लहरा है। उन्नति के शिखरों में अब राज्य ह...