कड़कती धूप भी है कहीं पर छाँव भी है
कहीं वीरान सी धरती बसे कहीं गांव भी है
चमकती सूर्य की किरणों से खिलखिलाता समंदर भी है
डूबे है कई लोग जिनपे नाव भी है
ठिठुरती ठण्ड है तो कही धधकती आग भी है
बने परछाइयों से वक़्त की पहचान भी है
भले तू चाह ले कितना समझना जानना इसको
भले तू जान ले लिखावट पढ़ ले पूरी पुस्तक को
बदल दे तेरे होने के दावे इस दुनिया में आने के
खिलाफत कर बगावत कर या चाहे बन जा सिकंदर तू
तू जान ले इतना कहीं भगवान भी है
उसके वजूद को झुठलाने का तेरा सपना अब भी बाकी है
तुही है धर्म का रक्षक तुही पापो का सागर है
तुही है धर्म का रक्षक तुही पापो का सागर है
तुझी में बस रहा इंसान तुझी में हैवान भी है
ये मायाजाल दो तरफ़ा है जो देखे वो दिखायेगा
चाहे निकलना बाहर तू धंसता ही जायेगा
दिखे है चार क़दमों की दूरी पर तेरी मंज़िल की राहें जो
वही रेत में धंसते तेरे दो पाँव भी है
मिले जो वक़्त थोड़ा सोचे बैठ ये छोटी सी दुनिया
यही तो राह है तेरी यही तेरी मंजिल भी है
यही नफरत की आंधी है तो प्यार का साहिल भी है
यही चलना संभलकर है तुझे यही भटकना भी है
कही सर झुकाना है तो कही झपटना भी है
ये अन्धो की दुनिया है जो आँख वाले हैं
ये बहरों की दुनिया है जो कान वाले हैं
कुछो में बख़्शी है ताकत नेकी की उस बनाने वाले ने
तभी भगवान कहलाने वाले कई इंसान भी हैं
by
Hem Chandra Tiwari
'MHICHA'
Love you bro❤
ReplyDeleteThank you.. Love you too
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