Saturday, 6 June 2015

कैसे कह दूँ


कैसे कह दूँ

कैसे  कह दूँ ये रात अपनी है
कैसे कह दूँ ये दिन अपना है
धड़कता है सिर्फ तेरे लिए, फिर
कैसे कह दूँ ये दिल अपना है

कभी सपनो में मुलाकात हुआ करती थी
कमबख्त अब तो नींद है कोई सपना है
अकेले बैठ कर भी सोचूँ तुझे हर पल
फिर कैसे कह दूँ ये लम्हा अपना है

जमीन की गहराईयों में आकाश के खालीपन में
जो मेरी आवाज कहीं खो सी जाती है
तेरा ही नाम निकलता है लफ्ज़ बनकर, फिर
कैसे कह दूँ ये अलफ़ाज़ अपना है

उम्मीदें ख़त्म भी हुई तो मुकाम--दिल्लगी पर
जिसे चाहा खुदा से बढ़कर पूरी जिंदगी भर
संजोये ख्वाब थे उसने दिल में अपने यार के
कैसे कह दूँ यही वो यार अपना है

खिलाया फूल जो मैंने पलक की सेज पर अपने
ज़माने भर में खुशबू बांटता वो रोज रहता है
तोड़ ले जायेगा उसको कोई अपन घर की चौखट पर
कैसे कह दूँ कभी खिलाया था वो फूल अपना है

इन गलियों में जितने देखता हूँ लोग चलते में
तेरी ही शक्ल दिखती है उन तमाम चेहरों में
मिले है गम इन्हें देखूँ जो रोज जिंदगी में, फिर
कैसे कह दूँ तू मेरी है तू पुराना प्यार अपना है




by
Hem Chandra Tiwari
'MHICHA'


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