Monday 24 August 2015

कुछ लम्हे याद आते है



कुछ लम्हे याद आते है
जब मैं था छोटा सा अबोध, खुले ही थे अभी शून्य कपोल
माँ की प्यार भरी पुचकार कुछ जाती थी बोल
माँ के आँचल की छाँव, वह देश वह गांव
उन दोस्तों के लतीफे हर पल याद आते है
कुछ लम्हे याद आते है

बचपन के बागान में, मासूमियत के खलिहान में
जन्नत के जहाँ में, माँ-बाप की पनाह में
बीते वो हर लम्हे याद आते है
कुछ लम्हे याद आते है

सूरज की तप्ति धूप से, पेड़ो से लटके आमों से
नदी के बहते पानी से, बचपन की जिंदगानी से
जुड़े हर पल याद आते है
कुछ लम्हे याद आते है

घर का वह आँगन, दुकान के ऊपर मकान
स्कूल का परिसर, वो खेल का मैदान
दोस्तों के साथ बीते वो हर पल याद आते है
कुछ लम्हे याद आते है

भाई -बहिनो का प्यार, मार व फटकार
पापा का दुलार, माँ की पुचकार
आज लिखता हूँ अकेला बैठा किसी कोने में खाली कमरे के
अनजान शहर में अपनों के बीच बेगाना बनकर
हर नए दिन कुछ नया सोचकर अपने दिल का फ़साना लिखकर
सोचता हूँ काश आज भी वो पल साथ होते
सोचता हूँ उन्हें हर पल, जो हर पल याद आते है
साँसों में धड़कते है, शरीर में बहते है
दिल में रहते है, आंसुओ में छलकते है
वो पल जो हर पल याद आते है
कुछ लम्हे याद आते है
कुछ लम्हे याद आते है ....

#mhicha



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1 comment:

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