Tuesday 14 June 2016

विरह वेदना




बरस जा, ए बादल! तू लाख मर्तबा
भिगो दे ये जमीं ये आसमाँ
तन गीला कर या मन में ले समा
तेरी मंद-मंद मुसकुराहट
और भावमयी संवेदना से
न मचलेगा मेरा जी
चाहे हों लाख जतन तेरे
छुप जाये आँखों की नमी
तेरी लाख कोशिशें मुझे रिझाने की
व्यर्थ हैं- मुझ पर.........
मै प्यासी हूँ, पर मिलन की
प्रीत को गले लगाने की
उसकी बाहों में बिखरकर बह जाने की
उसकी साँसों से दिल की हसरतें मिटाने की
उसके प्यार भरे लबों से प्यास बुझाने की
तेरा बरसना व्यर्थ है मुझ पर
ए सावन!
तू बढ़ा तो देगा मेरी वेदना
पर क्या मिला पाएगा मेरे प्रिय से?

#mhicha

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