Wednesday 21 January 2015

YUVA PREM 'an article to all youth'

Here I added a new article 'Yuva Prem' ( hindi language). Hopefully you will really like it. You can follow this blog by email to get new poems and articles alert via mail.

प्रिय मित्रों! क्या आपने किसी से सच्चा प्रेम किया है? या क्या आप किसी से सच्चा प्रेम करते हैं? एक अन्य प्रश्न जो मैं आपसे करना चाहता हूँ वो ये है कि क्या वर्तमान में 'युवा-प्रेम' सच्चा प्रेम है? इन सभी प्रश्नों के जवाब आप सभी के पास होंगे और आप इन सभी चीजों से परिचित भी हैं| 'युवा-प्रेम' की जो छवि प्राचीनकाल में थी, वो आज कहीं न कहीं धुंधली होती जा रही है| अपने आप को छोड़कर अगर आप अन्य के प्रेम जीवन के बारे में बात करें तो वह कहीं न कहीं उस पराकाष्ठा को नहीं छू पाता जो 'प्रेम' शब्द में झलकती है| "अपने आप को छोड़कर.." से मेरे तात्पर्य यूँ था क्यूँकि बहुत ही कम ऐसे महानुभाव होंगे जो स्वयं में खोट निकालना पसंद करते हों; अपितु इसके दूसरो में खोट निकालना ज्यादा सहज महसूस होता होगा| वैसे आप मानव स्वभाव से भली-भाँती परिचित हैं, शायद मुझसे भी कई ज्यादा| अतः आप सहज ही मेरे कहने का तात्पर्य समझ पा रहे होंगे| अब पुनः ऊपर आपसे किये गए प्रश्नों के उत्तर देने को कहा जाये तो शायद आपके उत्तरों से आप पूर्णतः संतुष्ट न हो पाएँ| ऐसा इसलिए नहीं है कि आज के वर्तमान युग में सच्चा प्रेम विद्यमान नहीं है या सच्चा प्रेम करने वाले युवक और युवतियां नहीं है अपितु इसका कारण फिर से मानव स्वभाव ही है|.....


युवा प्रेम के बारे में बहुत सी बातें हैं जो हम साँझा करेंगे पर इससे पहले युवा प्रेम को चित्रित करना अति आवश्यक है|

आदिकाल या प्राचीनकाल में प्रेम एक दैवीय अनुभूति थी जिसका चित्रण हमारे धर्म ग्रंथो या ऐतिहासिक रचनाओ में पूर्ण रूप से मिलता है| इस समय पुरा प्रेम के विषय में बात करने का एक ही उद्देश्य है कि हमारे मष्तिष्क में पुरा प्रेम की एक छवि उभरकर सामने आये| किसी साहित्यिक प्रेमी की अगर बात करें और प्राचीन प्रेम प्रसंग के परिदृशय को चित्रित करना चाहें तो एक प्राकृतिक वातावरण- लहलहाते खेत, घास के मैदान, बर्फीली चोटियाँ, शोर करता सागर, शांत मधुर कल-कल करता नदियों का पानी एवं लहरें, पक्षियों का सुगान, फूलों के बगीचे, चाँदनी रात और इन सभी के बीच एक युवती का अपने साथी से लज्जावान होना; अन्य कई ऐसी बाते जो प्रेम की एक सुन्दर कल्पना को संजोकर हमारे अंतर्मन को भाव-विभोर कर देती हैं एवं एक प्रेममयी भाव निखरकर हमारे हृदय में उद्दीप्त हो उठता है|
 
अब बात करते है वर्तमान 'युवा-प्रेम' की तो सीधी सी बात है: हर कोई व्यक्ति अपने कल्पना के सच्चे प्रेम को पाने के लिए प्रयत्नरत है और इसी प्रेम को पाने की होड़ में आज का 'युवा-प्रेम' मात्र उन ज्वारीय लहरों के समान हो गया है जो अत्यधिक शोर करते हुए एक विशाल ऊर्जा के साथ समुद्र की सतह से उठकर मानो अपने प्रियतम को पाने के लिए अत्यधिक उत्सुक एवं प्रयत्नशील होती है और कुछ समय बाद किनारे की एक ठोकर मात्र से ही अपनी संपूर्ण ऊर्जा एवं उत्साह खोकर वापस खाली हाथ लौट जाती है और अदृश्य हो जाती है, इस समंदर में मानो कभी वो थी ही नहीं| फिर कोई अन्य लहर फिर से वही प्रयत्न करती है, ये लहरें; और पुनः ठोकर खाकर अदृश्य हो जाना मानो जैसे युवा प्रेम का स्वभाव बन गया है| 
 
कुछों का प्रेम उस नदी के तरह अस्थिर है जो किसी क्षेत्र को कुछ समय तक मिलने के बाद अचानक अपना मार्ग परिवर्तित कर लेती है और पुनः मुड़कर नहीं देखती| वर्तमान 'युवा-प्रेम' में झील के समान ठहराव वाला प्रेम बहुत ही कम देखने को मिलता है जो युग-युगांतर के लिए एक-दूसरे के लिए ही बने होते है और कभी एक-दूसरे से अलग नहीं होते|  वर्तमान में हर दिन न जाने कितने प्रेमी अपने प्यार का इजहार करते हैं और कितने ही अपने प्रेम-सम्बन्धो को तोड़कर नए सम्बन्ध बनाने को अग्रसर होते हैं| यही तो हमारी फितरत है कि जब तक सब कुछ हमारे मनमुताबिक चलता है तो सब ठीक लगता है और जैसे ही कोई चीज हमारे खिलाफ होती है तो जो कल तक हमारा था आज हम उससे मुह मोड़ लेते हैं, ठीक उन्ही लेहरो कि तरह|

और ठीक ही तो है, जो हमारे मुताबिक नहीं जी सकता वो हमसे प्यार नहीं करता, उसे हमारे लिए बदलना चाहिए| सिर्फ प्यार के ढाई अक्षर कह देने मात्र से ही प्यार नहीं होता| अपने प्रेमी के लिए आपका दायित्व मायने रखता है और अपने दायित्वों का निर्वहन ही इस बात का प्रमाण है कि आप उससे प्यार करते है या नहीं| अपने प्रेमी से अपेक्षाएं रखना अच्छी बात है और उसका उन अपेक्षाओं को पूरा करना भी जरुरी है पर उसके लिए आपका फर्ज भी है और वो एक फर्ज ये है कि वो इन दायित्वों के लिए अकेला उत्तरदायी नहीं है  आप भी हैं जिसे इन दायित्वों को पूरा करना है| सच्चे प्यार में कोई व्यक्ति किसी भी बात के लिए अकेला उत्तरदायी नहीं होता| यह एक प्रेमी जोड़ा है जो हर परिस्थितियों में साथ रहता है, एक दूसरे को समझता है और अपने प्रेम से परिस्तिथियों को अपने अनुकूल बनाता है|

आह! कितनी छोटी सी बात है ये और इसे समझने में न जाने क्यों हमें इतनी परेशानी होती है| जिंदगी गुजर जाती है रिश्ते बनते हैं और बिगड़ते हैं और जाने-अनजाने में अपने सच्चे प्यार को हम खो बैठते हैं| अगर ये छोटी सी बात अमल में लाएँ तो युवा प्रेमी कई मायनो में अपने सच्चे प्रेम को चरितार्थ कर पाएंगे| अब मैं अपनी पहले कही हुई बात दोहराता हूँ कि वर्तमान युग में भी सच्चे प्रेमी और सच्चा प्रेम विद्यमान है, पर जरुरत है तो मानव स्वभाव को समझने की, अपने प्रेमी को जानने की, उसके लिए वफ़ादार रहने की और उसकी खुशियों का ख्याल रखने की| सच्चे प्रेम का मतलब है दो आत्माओं का मिलन और जब दो आत्माएं एक हो जाती हैं तो उनका अलग होने का सवाल ही पैदा नहीं होता| वास्तव में 'दो जिश्म एक जान' वाली बात सच्चे प्रेम की आधारशिला है|

ये तो बात थी सच्चे प्रेम की पर मन बहुत ही कुंठित होता है जब समाज को भ्रष्ट प्रेम के जीवो द्वारा जकड़े हुए देखता हूँ| असल में इसका एक कारण आकर्षण और प्रेम में विभेद नहीं कर पाना है| चलो ये बात भी थोड़ी पचा ली जाये तो वो लोग जो सिर्फ प्यार के नाम पर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं उन्हें प्यार शब्द का मतलब भी नहीं पता और प्यार शब्द के आड़ में वो सिर्फ अपनी कामुकता को सार्थक करते हैं, उन्हें प्यार शब्द को बदनाम करने का कोई हक़ नहीं है| अगर कामुकता की बात आ ही गयी है तो एक तीसरा पहलू भी मैं अवश्यरूप से यहाँ पर उद्धृत करना चाहूँगा| हालाँकि वर्तमान युवा पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति से काफी प्रभावित है और उसी के प्रभाव में वे अपने मार्ग से भटक रहे हैं पर ये भटकाव छणिक है| जिस तरह से बीच समंदर में जहाज पर डेरा डाले हुए एक पक्षी पूरे आकाश का चक्कर लगाने के बाद फिर से उसी जहाज पर आकर ठहरता है, उसी तरह भूले-भटके युवा एक दिन स्वाभाविक रूप से सद्मार्ग पर अग्रसित होंगे| पर उन लोगो का सद्मार्ग पर लौटना नामुमकिन है जो कामुकतावश यह भी भूल गए है कि  वो तो इंसान हैं, कोई शैतान नहीं| शायद आप समझ गए होंगे कि मैं किन लोगो की बात कर रहा हूँ| ये वही लोग हैं जिन्होंने कामुकतावश मानवता को शर्मशार किया है और यही वो लोग भी हैं जो 'युवा-प्रेम' के दुश्मन हैं| क्या हो गया इन लोगो को जो ये इतने विवश हो जाते हैं कि किसी नारी की इज्जत करना ही भूल जाते हैं| धिक्कार है इन लोगो को जो ये राक्षसों से भी नीच हरकत करने पर उतर आते हैं| रामायण में रावण ने सीता माँ का हरण अवश्य किया था पर नारी की मर्यादा का ख्याल तो उसने भी रखा था|

'युवा-प्रेम' के द्वारा मैं सिर्फ इस विषय पर अपने विचारों को आपके साथ साझा करने की कोशिश कर रहा हूँ| शायद कुछो को मेरी बातें अच्छी लगी और कुछो को नहीं भी पर इतना जरूर है कि कहीं न कहीं आप ये जरूर सोच रहे हैं कि क्या मेरा प्रेम सच्चा प्रेम है?

No comments:

Post a Comment

कई भाई लोग साथ आ रहे हैं, अच्छा लग रहा है, एक नया भारत दिख रहा है। आजाद हिंद के सपनो का अब फिर परचम लहरा है। उन्नति के शिखरों में अब राज्य ह...