Friday 7 August 2015

एक नई राह


एक नई राह

आज सपने फिर से हुए उजागर
जैसे है नई एक राह बनी
पतझड़ की आंधी थमी अभी और
नव-जीवन की आश बनी

उज्जवल प्रकाश से भर मन को
जब उगता सूर्य प्रदीप्त हुआ
विपदा की धुंध है छँटी हुई अब
स्वर्णिम लाली है खिली-खिली

पुरापाषाण भी भव्य लग रहे
जैसे दिव्य प्राण की मूरत हो
भूधर की ओंस भी बुझी-बुझी सी
जैसे नव-चेतन की सूरत हो

नदियों का कल-कल करता स्वर भी
मृदु वीणा की तान लगी
आज सपने फिर से हुए उजागर
जैसे है नई एक राह बनी
 

by
Hem Chandra Tiwari
'MHICHA'


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