प्रभावशाली
कौन?
एक प्रश्न जो कभी
मन में तैरता
था, आज एकाएक
एक सूनामी बनकर
मेरे सामने खड़ा
हो गया-
‘प्रभावशाली कौन?’
‘प्रभावशाली कौन?’
बात सामर्थ्य, पौरुषत्व, समृद्धता
की नही बल्कि
व्यवहारिक सत्य की
है| टूटते हुए
आशियाने की जब-जब दीवारो
में दरारें पड़ती
हैं या एक
ईंट या पत्थर
टूटकर ज़मीन पर
गिरता है, तो
घर में रहने
वालों के लिए
सबसे बड़ी चिंता
का विषय होता
है| घर का
हर सदस्य उस
घर के पुनर्निर्माण
या मरम्मत के
लिए हर संभव
प्रयास करता है
| वही प्रयास मैं
भी इस लेख
के माध्यम से
कर रहा हूँ|
रुपये की चकाचौंध
हो या सामाजिक
रुतबा या कोई
अन्य कारक, सभी
अपने में प्रभावशाली
है| पर बात
जब समाज की
हो, सामान्य नागरिक
की हो, छोटे
नौनिहालों की हो,
महिलाओं की हो
और युवा वर्ग
की हो तो
वे कारक जो
सामाजिक समरसता को प्रभावित
करते है, वास्तव
में अत्यधिक प्रभावशाली
हैं| जैसे एक
घर सीमेंट, पत्थर, बालू, सरिया,
लकड़ी इत्यादि से
बनकर तैयार होता
है, ठीक वैसे
ही एक स्वस्थ
समाज के निर्माण
में कई चीज़े
उत्तरदायी हैं| पर
‘मिलावट कहा पर
हुई?’ इस प्रश्न
का उत्तर खोजना
परम आवश्यक है
और उसे सुधार
पाना उतना ही
मुश्किल पर परमावश्यक
है|
आज मेरे घर
की एक ईंट
फिर गिरी जिसने
मुझे इस बात
को सोचने पर
विवश कर दिया
कि आख़िर कमी
कहाँ पर रह
गयी? कोलकाता में
एक मदरसे के
शिक्षक को सिर्फ़
इस बात के
लिए हिंसक तरीके
से पीटा जाना
कि वो छात्रों
को ‘राष्ट्र गान’
का पाठ करा
रहे थे, वाकई
एक चिंता का
विषय है| एक
भारतीय होने के
नाते भारत में
रहने वाले हर
एक नागरिक का मूल
कर्तव्य है कि
वे सभी देश
के राष्ट्र गान
का पाठ करें|
तो फिर ग़लती
क्या थी? क्या
ग़लती ये थी
कि कोलकाता मदरसे
के शिक्षक एक
मुसलमान हैं? और
क्या मुसलमानो में
‘राष्ट्र गान’ का पाठ करना
हराम है? बुनियादी
स्तर पर ये
दोनो ही बातों
का कोई वजूद
नही| पर प्रश्न
वही है ‘प्रभावशाली
कौन?’ जो हम
देखते हैं और
अनुभव करते हैं,
वही परम सत्य
प्रतीत होता है|
इतनी बड़ी आबादी
वाले देश में
एक बड़ी आबादी
मुस्लिम समुदाय की भी
है| तो क्या
इतने सारे मुस्लिमो
के लिए इन
दोनो प्रश्नो का
जवाब ‘हाँ’ है| अगर
‘हाँ’ है,
तो शायद यह
घर बनाने में
जो ईंटे लगाई
गयी हैं, आप
उन ईंटों की
गुणवत्ता से काफ़ी
नीचे हैं| अगर
जवाब ‘ना’ है तो
फिर आवश्यकता है
घर को गिरने
से बचाने की
और आवश्यकता है
उन खराब ईंटों
को निकालकर फेंकने
की जिनमें दीमक
लगा हुआ है,
जो खुद तो
समाप्ति की कगार
पर हैं और
साथ ही आस-पास की
अन्य ईंटों को
भी खराब करने
की कोशिश कर
रहे हैं|
जब किसी पदार्थ
की गुणवत्ता पर
सवाल उठते हैं
तो कोई भी
उन्हें स्वीकार नहीं करता,
शायद यही कारण
है कि कुछ
लोगो की वजह
से देश में
मुस्लिम समुदाय की देशभक्ति
पर सवाल खड़े
हो रहे हैं|
ये वो लोग
हैं जो शायद
अन्य से अधिक
प्रभावशाली हैं| ये
वो लोग हैं
जो हमारे भारत
देश में रहकर
‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे
लगाते हैं और
‘राष्ट्र गान’ गाने में जिन्हें
आपत्ति होती है|
ये वो लोग
हैं जो मुस्लिम
युवाओं को गुमराह
करते हैं और
उन्हें जन्नत का लालच
देकर आतंक और
हैवानियत के नर्क
में धकेल देते
हैं| ये वही
लोग हैं जो
हिंदुओं को ‘काफ़िर’ और
हिन्दुत्व को अपना दुश्मन
मानते हैं|
पर अफ़सोस! ये ज़्यादा
प्रभावशाली हैं, इसलिए
नहीं कि ये
इस तरह की
हरकतें करके अपना
देशद्रोही होने का
प्रमाण दे रहे
हैं, बल्कि इसलिए
की तमाम हिंदू
और मुस्लिम देशभक्त
एक स्वर में
आवाज़ बुलंद नहीं
कर रहे| मुझे
विश्वास है- जिस
दिन इनकी सम्मिलित
आवाज़ एक
तीव्र गर्जना करती
हुई इनके उपर
गिरेगी, उस दिन
कोई माई का
लाल देशद्रोही फिर
पैदा ना होगा|
भारत देश में
सिर्फ़ ‘भारत जिंदाबाद’
के नारे गूंजेंगे,
भारत का बच्चा-बच्चा ‘राष्ट्रा गान’ गाएगा और फिर
कोई मासूम आतंक
और हैवानियत की
आग में नही
जलेगा|
वक़्त है सम्मिलित
होकर देशहित में
कार्य करने का और
इन चंद जयचंदों
को ये बताने
का- ‘प्रभावशाली कौन?’
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