स्वप्नो की राह
गिरा धरा पर घुटने टेके
उदर पी रहा धूल
स्वास चाटती कंकड़ पत्थर
माथे पे माटी भाल
श्वेत वेश हुआ मटमैला
लोग करें उपहास
सर पृथ्वी के चक्कर काटे
सब देख रहे दूर क्षेत्र से
कोई पीछे ना आगे
अब खुद को आप सम्भालूं
मैं क्यूँ मुरझाया फूल बना
मैं भी थोड़ा मुस्कालू
तो क्या जो ठोकर खाई
कौन पराए कौन हैं अपने
ये बातें समझ मेंआई
एक अलख जगा रखी है
कुछ संभलू, उठु, चलूँ राह में
फिर जीत मेरी पक्की है
सोचे ही झटपट उठ बैठा
हाथों से धूल झड़ाए
पैरों के शूल को किए दूर
और आगे कदम बढ़ाए
कर गुमान तू पथिक स्वयं पर
आसान नही स्वप्नो की राह
विस्वास समेट और बढ़ा हौंसला
पूरी कर ले मनकों की चाह
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