Friday 8 January 2016

स्वप्नो की राह



स्वप्नो की राह
गिरा धरा पर घुटने टेके
उदर पी रहा धूल
स्वास चाटती कंकड़ पत्थर
तलवों पर चुभते शूल


साने हाथ रंगे माटी रंग
माथे पे माटी भाल
श्वेत वेश हुआ मटमैला
लोग करें उपहास

थम गयी चेतना किंचित भर को
सर पृथ्वी के चक्कर काटे
सब देख रहे दूर क्षेत्र से
कोई पीछे ना आगे

दिल सहमा, मन रूठा ऐसे
अब खुद को आप सम्भालूं

मैं क्यूँ मुरझाया फूल बना
मैं भी थोड़ा मुस्कालू

मेरी राह है कदम भी मेरे
तो क्या जो ठोकर खाई
कौन पराए कौन हैं अपने
ये बातें समझ मेंआई

ना चिंता, ना भय,ना संशय
एक अलख जगा रखी है
कुछ संभलू, उठु, चलूँ राह में
फिर जीत मेरी पक्की है

सोचे ही झटपट उठ बैठा

हाथों से धूल झड़ाए
पैरों के शूल को किए दूर
और आगे कदम बढ़ाए

कर गुमान  तू पथिक स्वयं पर

आसान नही स्वप्नो की राह
विस्वास समेट और बढ़ा हौंसला

पूरी कर ले मनकों की चाह

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