Saturday 9 January 2016

एक कहानी


दूर कहीं शुष्क घाटियों में, रात के घनघोर अंधेरो में, तारों से भरे हुए आसमान को देखना राजू को बहुत पसंद था| राजू एक ग़रीब घर में पैदा हुआ, अपाहिज बच्चा था; जिसके पिता एक सुलझे हुए किसान थे, जिनके पास कुछ ही बीघा ज़मीन थी| ये ज़मीन पश्चिमी घाटों के  पास होने के कारण सिर्फ़ धान की खेती कर पाना ही मुनासिब था| पिछले दो सालो से समय  पर बरसात ना होने के कारण फसल अच्छी नही हो पाई थी और राजू के पिता पर आर्थिक बोझ गया था| राजू अभी आठ साल का था और इन बातो को समझने के लिए बहुत ही छोटा| राजू के पिता एक तो फसल नष्ट होने की वजह से दुखी थे और दूसरा उन्हे राजू के भविष्य की चिंता अंदर ही अंदर  सताए जा रही थी| वे जानते थे कि पैरों के बिना जीवन कितना मुश्किल होता है, वह भी जब ,वो राजू को एक किसान के रूप में ही देखना चाहते थे |परंतु राजू के अपाहिजपन ने उन्हे भीतर से खोखला कर दिया था| राजू की मा एक आदर्श पत्नी और मा दोनो ही थी, जो अपना कर्तव्य बहुत ही तन्मयता से निभा रही थी| राजू के पिता ने राजू को लेकर अपनी परेशानियों को ,कभी भी, किसी के सामने जाहिर नहीं होने दिया| पर आज उन्हे ये बात बहुत ही परेशान कर रही थी कि आख़िर राजू के भविष्य की दिशा किस ओर होगी? वह किस तरह से अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करेगा? समाज में अपाहिजों के हालात उन्होने देखे थे| वो अपने बच्चे के भविष्य की इस कठोर कल्पना से काफ़ी विचलित हो जाते थे| वह राजू को इस तरह से जीवन यापन नहीं करने देना चाहते थे| पर जब भी वह इस बारे में सोचते , उन्हे कोई भी रास्ता नज़र नहीं आता था और वो हताश होकर एक छोटे बच्चे की तरह किसी चमत्कार के होने की कामना करते रहते थे | राजू की मा उनकी इस मनोस्थिति को जानती थी ; पर उसने उनसे इस बारे में कभी कोई बात नहीं की| वह उन्हे और दुखी नही करना चाहती थी| वह हमेशा उनके सामने अपने बच्चे को परियों की कहानिया सुनाया करती थी, जिसमे तरह-तरह के चमत्कार की बातें रोज सुनने को मिलती थी| राजू के पिता मन ही मन राजू को उन  परियों की कल्पना में ही छोड़ देना चाहते थे| कभी कभी जब राजू की मा उसे कहानी सुना रही होती और उसके पिता वही होते तो वो उसकी मा को ध्यान से सुनते और परियों की कल्पना में खो जाते कि कोई परी उनके बच्चे के जीवन को भी सुधार दे| उनकी मा भी बचपन में उन्हे इसी तरह की कई कहानियाँ सुनाया करती थी| पर वास्तविक जीवन में इन कहानियों का कोई अस्तित्व नही था, ये बस एक अच्छी और  रोमांचक कल्पना मात्र थी और राजू के पिता ये भली भाँति जानते थे|





राजू अपने माता-पिता की इकलौती संतान था, जो काफ़ी मन्नतों के बाद उनके विवाह के : साल बाद हुआ था, और जन्मजात अपाहिज|आठ साल की उम्र में भी राजू स्कूल नहीं जाता था| हालाँकि उसकी मा उसके पिता से इस बारे में बात कर चुकी थी, पर उसके पिता इस बात से भयभीत थे कि राजू अन्य बच्चों के बीच कैसे रहेगा? और वह कैसा महसूस करेगा, जब वह दूसरे बच्चों को दौड़ते हुए देखेगा और खुद को अहसाय महसूस करेगा?

राजू के पिता रोज सुबह खेतों में जाकर काम किया करते और शाम को दिन ढलने से पहले ही घर वापस जाते थे| पर आज अंधेरा हो चला था और अभी तक वो घर नही आए थे| राजू की मा इस बात को लेकर परेशान थी| वह मन ही मन उनकी कुशलता की कामना करती हुई चूल्हे में आग फूँक रही थी| चूल्हे से उठने वाला धुँआ, घास और लकड़ी की बनी झोपड़ी के बीच के सुराखों से बाहर निकलता हुआ ऐसा लग रहा था जैसे झोपड़ी ग़रीबी की आग में जल रही हो|घर के बाहर आँगन में एक बड़ा अमरूद का पेड़ था और कुछ नींबू के पेड़| राजू अमरूद के पेड़ के नीचे बैठा पत्थरों से खेल रहा था| तभी उसकी नज़र एक लड़की पर पड़ी जो उसके घर से थोड़ी ही दूर एक पत्थर के पीछे छिपकर रो रही थी| राजू जो ठीक से चल भी नहीं पाता था, उठा और एक हाथ से अपने अपाहिज पैर को सराहते हुए दूसरे पैर से आगे बढ़ा और बड़ी मशक्कत से उस लड़की के पास पहुँचा|और लड़की से जाकर बोला, “तू रो क्यूँ रही है? जा अपने घर जा| पता नही है क्या रात को शेर खा जाता है| बाबा कहते हैं बच्चों को अकेले बाहर नहीं जाना चाहिए|” ये सुनकर वो और रोने लगी और राजू को गुस्से से देखने लगी| राजू को कुछ समझ में नहीं आया और वह वापस घर की ओर चल दिया| वो लड़की उसके अपाहिज पैर को घूर रही थी और सिसकते हुए चिल्लाई, “तुम्हारे पैर को क्या हुआ है? तुम ऐसे क्यूँ चल रहे हो? तुम्हे ऐसे चलते देखकर मुझे डर लग रहा है|

राजू ने उसकी बात सुन ली पर कुछ जवाब नहीं दिया और चलते चला गया| घर के अंदर पहुँचते ही उसने अपनी मा से पूछा, “मा! मेरे पैर को क्या हुआ है? मैं आपके और बाबा की तरह कब चलूँगा?” मा का सीना ये सुनकर छलनी- छलनी हो गया और उसकी ममता उसकी आँखों से छलकने लगी| वो बोलीबेटा अभी तू छोटा है, जब बड़ा होगा तो अपने बाबा की तरह खेतों मेंकाम करेगा|”

मा! क्या आपको मुझे देखकर डर लगता है?” राजू बोला|

मा को समझ नही आया कि वो आज ऐसे सवाल क्यूँ कर रहा है? पहली बार राजू अपने पैर के बारे में पूछ रहा था और वो भी इस तरह से| उसकी मा बेचैन हो गई पर राजू को तो जवाब देना था | वो बोलीनही तो|तू तो मेरा राजा बेटा है; भला तुझसे क्यूँ डरूँ? तू तो लाखों में एक है, लाखों में|चल अब खाना खा ले|”

पर मा वो लड़की ने तो कहा कि उसे मुझे देखकर डर लग रहा है|” राजू बोला

कौन लड़की बेटा मा ने पूछा|

मा! वही लड़की जो बाहर है|” राजू ने उत्तर दिया

बाहर! कहाँ बाहर? कहाँ?” मा कहते हुए खड़ी हुई और बाहर जाकर देखा| वो लड़की अमरूद के पेड़ की टहनी पर लगे अमरूद को उछल-उछल कर तोड़ने की कोशिश कर रही थी| तभी पीछे से राजू की मा ने आवाज़ दी, “ लड़की! कौन है तू? और यहाँ क्या कर रही है?” राजू की मा को देखकर वो लड़की सहम गयी और उल्टे पैर पीछे को बढ़ने लगी| राजू की मा को अपनी ओर आते देख उसने ज़ोर-ज़ोर से रोना शुरू कर दिया|

अरे-अरे! अजीब लड़की है| पहले मेरे लड़के को भला बुरा कहती है, फिर चोरी करती है और अब रोती है|”
कौन है तू? नाम क्या है तेरा? और यहाँ क्या कर रही है?” राजू की मा एक ही साँस में सब सवाल कर गयी| और बच्ची और ज़ोर से रोती चली गयी|

राजू की मा ने मानो पूरी परेशानियों का खुमार उस लड़की पर निकाल दिया हो| पर उसके पास एक मा का हृदय भी था जो रोती हुई बच्ची के आँसू ज़्यादा देर तक देख ना सकी| उसे अपनी ग़लती का एहसास हो गया था और पछतावा भी| वह उस लड़की के पास गयी और उसके सिर पर हाथ फेरकर पूछा  भूख लगी है?”
लड़की ने उसकी ओर आँख उठाकर देखा और फिर नीचे देखने लगी पर कुछ बोली नहीं|

चल भीतर चल|” राजू की मा ने कहा और उसका हाथ पकड़कर वो उसे अंदर ले आई|

 
मा इसे अंदर क्यूँ लाई? अब ये डरकर फिर रोने लगेगी राजू चिल्लाकर बोला

पर इस बार लड़की के आँखो में आँसू थे, डर नहीं जौर वो ज़ोर-ज़ोर से सिसक रही थी| रो-रो कर उसके बुरे हाल हो गये थे| गाल लाल और नाक बहने लगी थी, जिसे वो अपने हाथो से साफ करने की कोशिश कर रही थी| गोरा रंग और हल्के भूरे बाल जो चेहरे पर आगे की ज़ोर निकले हुए थे और पीछे छोटी सी चोटी उसके कंधों तक लंबी|बालों के नीचे उसकी हल्की नीली आँखों से बहते हुए आँसू ऐसे लग रहे थे जैसे नीले आसमान से मोतियों की बरसात हो रही हो, उसकी बहती नाक उसके असहायपन और भोलेपन का एहसास करा रही थी| हल्के नीले रंग की फ्रोक में, जिसकी बाजुओं पर झालर लगे हुए थे ,वह किसी अच्छे घर से लगती थी| उसने पैरों में रेडियम लगे हुए जूते पहन रखे थे, जिन्हें राजू बहुत देर से घूर रहा था| राजू की मा को समझ नही आ रहा था कि वो लड़की वहाँ क्या कर रही थी और उसने उसे घर के भीतर लाकर कुछ ग़लत तो नहीं किया| उसके मा-बाप कहाँ हैं? और इतनी रात को ये लड़की यहा आई कैसे? ऐसे कई सवाल उसके अंतर्मन में उठ रहे थे| जहाँ एक ओर उसका अपना मासूम राजू था वहीं वह सहमी हुई, घरवालो से दूर नन्ही सी जान| वह पूछती भी तो किससे पूछती? राजू के पापा भी घर पर नहीं थे| सब कुछ उसे ही संभालना था| हालत उस पर हावी हो गये| उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी और उसका जी भर आया| उसकी आँखो से आँसू बहने लगे पर उसने जल्द ही उन पर काबू पा लिया और लड़की को अपने पास बुलाया और प्यार से उसके भूरे बालों पर हाथ फेरकर पूछा, “ बेटी तेरा नाम क्या है?”

इस बार लड़की ने जवाब दिया, “मारिया|..................................

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