Sunday 10 January 2016

एक कहानी: आगे पढ़ें 1


 आप पढ़ चुके हैं- http://amazingthou.blogspot.in/2016/01/blog-post_9.html

इस बार लड़की ने जवाब दिया, “ मारिया”..................................

आगे की कहानी.........

मारिया!”  राजू की मा ने आश्चर्य के साथ धीमे स्वर में दोहराया| वह क्रिस्चियन लड़की उनके गाँव में क्या कर रही थी? उनके गाँव में तो कोई क्रिस्चियन है ही नहीं| तो ये लड़की कौन है और यहाँ कैसे आई? फिर वही बातें उसके दिमाग़ में चक्कर काटने लगी| पर व्यर्थ सिर खपाने से कोई लाभ न था|


उसने मारिया और राजू का अच्छे से हाथ-मुँह धुलाया और उनके लिए थाल में खाना परोस दिया| आज खाने में खिचड़ी और अचार था| पिछले छ: दिनों से रात्रि के भोजन में यही परोसा जा रहा था| बच्चो ने खाना शुरू ही किया था तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी|

शायद, तेरे बाबा होंगे|” राजू की मा राजू से बोली और उठकर दरवाजा खोलने चल दी| जैसे ही उसने दरवाजा खोला तो दरवाजे पर कोई और नही, राजू के पिता ही थे| पर उनकी हालत कुछ ठीक नही लग रही थी|  वो कुछ परेशान थे| उनकी परेशानी उनके चेहरे से साफ झलक रही थी| उनके कुर्ते पर खून के निशान थे| सिर की पगड़ी कुछ बिखरी हुई सी| बाजुएँ कोहनी से उपर तक समेटी हुई और एक चप्पल, टूटी हुई, जो उन्होने एक हाथ में पकड़ी हुई थी| दूसरे हाथ से वो फावड़ा कंधे पर उठाए हुए थे| उनके माथे से पसीना बह रहा था और चेहरे की हवाइयाँ उड़ी हुई थी| चेहरे का सावला रंग आज और भी कला लग रहा था|

गये आप| आज इतनी देर कहा लगा दी?” राजू की मा बोली |

 दरवाजे से भीतर आते ही लालटेन की रोशनी जब उनके उपर पड़ी तो राजू की मा भौचक्की रह गयी|

ये खून कैसा?” राजू की मा के स्वर में उसकी परेशानी साफ झलक रही थी| राजू के पिता बिना कुछ उत्तर दिए पानी के बर्तन की ओर चल दिए और राजू की मा से दूसरा कुर्ता और धोती लाने को कहा| बाहर आँगन में बैठकर अच्छे से नहाने के बाद वो भीतर आए और खटिया बिछाकर बैठ गये| राजू की मा तब तक पानी का लोटा लेकर गयी और लोटे को उनकी ओर बढ़ाकर बोली, “पानी पी लीजिए|” पर राजू के पिता ने बिना कुछ कहे सिर हिलाकर पानी पीने को मना कर दिया|

राजू की मा जो पहले से ही अंज़ान लड़की के घर में आने की वजह से परेशान थी, उसकी परेशानी और बढ़ गयी थी| आज तो सवालों का सैलाब उसके मन भीतर तैर रहा था ; पर जवाब देने वाला कोई नहीं- दो नन्हे मासूम बच्चे और एक स्तब्ध पति| “ आख़िर आज हुआ क्या है?” वह मन ही मन में खुद से सवाल करती रही|

चलिए, खाना खा लीजिए| बच्चे भी खा रहे हैं| वैसे भी समय बहुत हो गया है|” राजू की मा ने धीरज बाँधते हुए उनसे चलने का आग्रह किया|

मुझे भूख नही है| तुम जाकर खा लो|” राजू के पिता ने बिना उसकी ओर देखे उदास मन से उत्तर दिया| मानो वो वहाँ पर थी ही नही| राजू के पिता अपने में ही खोए हुए, दोनो हाथो से कसकर खटिया के डंडे को पकड़े हुए थे| वही बैठे-बैठे ना जाने वो कौन सी दुनिया की सैर पर थे|

भूख नही है! सुनिए अन्न को मना नही करते| चलिए थोड़ा सा ही खा लीजिए|” राजू की मा ने निवेदन किया|

राजू के पिता ने तिरछी नज़र से उसकी ओर देखा और एक लंबी साँस लेते हुए रसोई की ओर चल दिए| राजू की मा भी उनके पीछे-पीछे पानी का लोटा उठाकर चल दी|

दीवार की ओढ़ से झाँककर देखा ही था कि राजू के पिता उसकी मा का हाथ पकड़कर बाहर ले आए|

ये लड़की यहाँ कैसे आई? और हमारे घर में ये क्या कर रही है?” राजू के पिता ने झुंझलाहट के साथ मध्यम स्वर में पूछा|

आप जानते हैं इसे? कौन है ये? और आप इसे कैसे जानते हैं? ये हमारे गाँव की तो नही लगती?” राजू की मा ने उल्टा उन्ही पर सवालों की बरसात कर दी|

राजू के पिता सिर पकड़कर ज़मीन पर बैठ गये|और फिर से अपने ही विचारों में खो गये| राजू की मा आश्चर्य से उनकी ओर देखती रही| फिर उनके पास बैठकर प्यार से उनके कंधे को सहलाने लगी और बोली, “सुनिए, आप नही बताना चाहते तो कोई बात नही| पर ऐसे उदास मन से ना बैठिए| आपकी ये चुप्पी मुझे किसी अनहोनी का आभास करा रही है|”

अनहोनी ही तो हुई है, राजू की मा| बहुत बड़ी अनहोनी |और कही ना कही हम भी इसमें शामिल हो गये हैं|” राजू के पिता ने लंबी साँस ली और कम्पित स्वर में बोले| उनकी आँखों में वह भय देखा जा सकता था, जिसके विचार ने उन्हे स्तब्ध छोड़ दिया था| अपने दोनो हाथो से आँखो को मलते हुए वो बोले, “ इस लड़की को अभी सरपंच के घर छोड़ देना ही बेहतर होगा”|

सरपंच के घर?” राजू की मा ने आश्चर्य भरे स्वर में पूछा|

नहीं! नहीं! हम ऐसा नहीं करेंगे| ओह! हे भगवान! ये कैसी मुसीबत में डाल दिया तूने?” राजू के पिता खुद से ही बोले और दोनो हाथों से अपने सिर के बालों को नोचने लगे| उनके लाल हो चुके कान लालटेन की रोशनी में तप रहे थे और उनके हाथ बेकाबू हो चके थे| उनका शरीर काँप रहा था और चेतना मानो जीर्ण हो चुकी थी| वो सुबककर रोने लगे और बड़बड़ाये, “ अनर्थ हो गया, राजू की मा, अनर्थ हो गया| और ये बच्ची जिसे पूरा गाँव ढूँढ रहा है, हमारे घर में है|” वो राजू की मा के कंधे पर सिर रखकर फुट-फुट के रोने लगे| राजू की मा ने बड़ी हिम्मत से धैर्य बाँधे रखा|

ज़रूर कुछ बड़ा अनर्थ हुआ है|” वह मन ही मन सोचने लगी| आज तक राजू के पिता कभी भी इस तरह से नहीं रोए थे| इतना लाचार और भयभीत राजू की मा ने उन्हें पहले कभी नही देखा था| राजू की मा का हृद्यचाप आसमान छूने लगा| उसकी  लंबी-लंबी साँसे फुँकार मार रही थी| रसोई से उठता धुँआ उसकी आँखो को जलाकर लाल कर चुका था| और आँसू की छोटी-छोटी बूँदें उस तपन को कम करती प्रतीत हो रहे थी | वह घिसटकर दीवार से पीठ सटाकर  बैठ गयी और पति का सिर गोद में लेकर उनके बालों पे हाथ फेरने लगी| आज वही राजू के पिता की भी मा थी और राजू के पिता भी एक छोटे बच्चे की तरह गोद में सिर रखकर रो रहे थे|

उस छोटे से घर में आज पता नही ये तूफान कहा से आया और उनकी आँखो को भिगोकर चला गया| उस घर की खुशियाँ आज कहीं छिप सी गयी थी| और इस आंतरिक कोहराम में भीतर रसोई में खाना खा रहे बच्चो की किलकारियाँ भी विलुप्त सी हो गयी| बस राजू की मा कुछ सुन पा रही थी तो उसके पति की सिसकियाँ, अगर वो कुछ देख पा रही थी तो उसके पति का असहायपन| उसकी भावनाओं का ज्वालामुखी अपनी चरमसीमा पर था, जो कभी भी फट सकता था|...................................

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