Wednesday 11 May 2016

मातृ शक्ति के चरणों में सादर प्रणाम!



कहते हैं कि माँ प्यार की मूरत होती है। 'मूरत' यानि 'प्रतिमा' जो अपने स्वरूप तो कभी नहीं बदलती,वैसे ही माँ का प्यार भी अपनी संतान के लिए सदैव अपरिवर्तनीय रहता है। शिशु के जन्म से लेकर अपनी मृत्यु के क्षण तक उसका प्यार एवं दुलार कभी कम नहीं होता। नौ माह तक शिशु को गर्भ में रखना और पालन-पोषण करना उसकी सहनशीलता, मातृत्व एवं अदम्य साहस का परिचय है। वह माँ ही है जो मेरे, आपके और हम सबके इस संसार में होने का कारण है। मैंने कभी उस ईश्वर को नहीं देखा जिसे इस सम्पूर्ण जगत का पिता एवं पालनहार कहते हैं पर मैं अपनी माँ के रूप में साक्षात देवी के दर्शन करता हूँ क्योंकि मुझे इस दुनिया में लाने वाली वही है। वह मेरी माँ ही है जिसने मेरे लालन-पालन में स्वयं के सुख त्यागकर मेरे सभी दु:खों एवं परेशानियों को अपने आँचल में समा लिया, जिसने मेरे चेहरे की एक मुस्कुराहट के लिए सैकङों मोतियों को अपने आँखों की पोटली में छिपाए रखा और अपने स्नेह से पाल-पोषकर मुझे इतना बङा किया। मैं ॠणी हूँ अपनी माँ का उस हर चीज के लिए जो मेरे जन्म से लेकर आज तक उसने मेरे लिए किया है। और मेरा दायित्व है कि हर एक क्षण, हर एक खुशी जिसका उसने मेरी खुशी के लिए त्याग किया, उसका एक गुलदस्ता बनाकर मैं उसके चरणों में रखूँ।

पर क्या हर संतान को यह दायित्व का आभास नहीं? क्या वह अपनी माँ के स्नेह से अछूता रहा है? या फिर इन सब बातों से अनभिग्य हैं वो संतानें जो स्वयं के पैरों पर चलने के बाद ये भूल जाते हैं कि उन्हें चलता देखने के लिए उनकी माँ ने कितनी मन्नतें माँगी और कितनी कोशिशें की। क्या उस माँ के बुढापे की परेशानियाँ उन संतानों को समझ नहीं आती जिनके घुटने के बल गिरने पर उनकी माँ का कलेजा चीरकर बाहर आ जाता था? क्या मोह और मद में भ्रष्ट मेरे वो सभी मित्र भाई जो अपनी माँ को बुढापे में सुख प्रदान करने के सर्वश्रेष्ठ पुण्य से वंचित हैं, नहीं चाहते कि उनकी माँ की आँखों के वो मोती कभी धरातल पर न गिरें पर उनकी चमक मुस्कान बनकर हमेशा माँ के होठों पर दिखाई दे।

मातृ दिवस मनाने के पीछे शायद यही उद्देश्य रहा होगा कि उन पथभ्रष्ट मित्र भाईयों को उनके दायित्व का बोध कराया जा सके। मेरे लिए इस मातृ दिवस का कोई औचित्य नहीं क्योंकि मेरे लिए हर दिन मातृ दिवस है और मेरा हर कार्य उसके चरणों में समर्पित उन पुष्पों के समान है जिनकी सुगन्ध से मंदिर समान हमारा घर आनन्दमय और खुशहाल बना रहता है।

मातृ शक्ति के चरणों में सादर प्रणाम!
लेखक
हेम चन्द्र तिवारी
नैनीताल, उत्तराखंड

No comments:

Post a Comment

कई भाई लोग साथ आ रहे हैं, अच्छा लग रहा है, एक नया भारत दिख रहा है। आजाद हिंद के सपनो का अब फिर परचम लहरा है। उन्नति के शिखरों में अब राज्य ह...