Sunday, 5 June 2016

सोचा था बदलाव बदल देगा इंसान को

सोचा था बदलाव बदल देगा इंसान को
सोचा था बदलाव बदल देगा इंसान को
थोड़ा बदलेगा उसके व्यवहार को
बदलना तो दूर की बात
बढ़ा लिया है अपने पाप को
सोचा था बदलाव बदल देगा इंसान को

कहीं पे चोरी,कहीं पे दंगे
मार रहे हैं सब भूखे और नंगे
सोचा था बढ़ाएगा भाईचारे को
प्रेम को, सदभाव को
सोचा था बदलाव बदल देगा इंसान को

एक हाथ से पैसा लेते, एक हाथ से काम कराते
फिर उसी पैसे के लिए एकदूसरे को मारते काटते
किसी दिन चबा जाएँगे समाज को
इस देश को, इस संसार को
सोचा था बदलाव बदल देगा इंसान को

धर्म को मज़ाक बना दिया है
कैसा था अब कैसा बना दिया है?
बाँट दिया है दुनिया, समाज को
इंसान को, भगवान को
सोचा था बदलाव बदल देगा इंसान को

अमीर, ग़रीब का भेदब नाकर
दबा दिया है इंसान को
बेच दिया है ईमान को
सम्मान को, पहचान को
सोचा था बदलाव बदल देगा इंसान को
BY
GAURAV NAILWAL
CLASS- 9TH
MOUNT OLIVET SR SEC SCHOOL
BURARI, DELHI-84

1 comment:

  1. बहुत सुंदर और मौजूदा समाज को इंगित करती रचना है गौरव, प्रयास जारी रखे, बहुत उम्दा रचना

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