Saturday 23 December 2017

कलम


मेरा साया जब जब कोरे कागज़ पर पड़ा
एक नया रूप लेकर शब्दों में उभर आया
एक दौर जो बीत गया मेरा ही था
आज ये दौर भी मेरा ही है 
और कल भी मेरा ही रहेगा।

लोगों की उम्र बढ़ती चली गयी
शरीर जीर्ण, शक्ति क्षीण होती गयी
ज्यों ज्यों मेरी उम्र बढ़ती गयी
मेरी ताक़त और ज्यादा बढ़ती गयी

न जाने अब तक कितनो का साथ निभाया मैंने
मैं न जाने कितने असहायों का सहारा बना
न जाने कितने फरियादियों को इन्साफ दिलाया मैंने
मेरा वज़ूद हमेशा रहेगा

जब तक तेरे हाथों से दूर हूँ तो मजबूर हूँ
पर जब तेरे हाथों में आता हूँ तेरी ताक़त बन जाता हूँ
मैं कलम हूँ।
मुझे संभाले रखना अपने दिल के क़रीब
कल फिर तुझे मेरी ही ज़रुरत होगी।

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