फ़लसफ़ा मेरी यारी का कुछ ऐसा रहा
कुछ मेरे कुछ उसके अरमानो का जनाज़ा निकला
और फिर भी शहनाइयां बज रही थी अपनों के घर
मिलती आवाज़ें थीं और मिलते दस्तूर भी
पर ज़िन्दगी के मायने कुछ बदले हुए से थे।
अधूरे इश्क़ की दास्ताँ कुछ ऐसी थी
न वो रूठे हमसे न हम ही उनसे रूठे थे
हर वफ़ा सच्ची थी हर वादे झूठे थे
बस ये समझ लीजिए ज़नाब
वो आज भी अधूरे हैं जो कल तक अधूरे थे।
#mhicha
Awesome
ReplyDeleteधन्यवाद मित्र।
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