Saturday, 7 July 2018

बिसरे ख़्वाब


इक अज़ब सा ख़याल है दिल में
एक गज़ब का एहसास
वक़्त ढूंढ लाया है शायद
मेरे ख्वाबों को मेरे पास

कल तक तो बिसरा गये थे
आज फिर रौनक दिखी है
महसूस होने लगा अब हक़ीक़त में
कभी देखा था जो ख़्वाब।

अब न बेहोशी छानी है
न शिथिल पड़ेगा मन
हर पर नज़रों के सामने रख
संवरेगा हर छन, 

बंद मुस्कानों की
बोलती खुल सी गयी
एक डूबा सागर फिर लहर बन गया
बर्फीली हवाओं की गर्माहट
अब चुभती नहीं 
बेशक सर्द रहीं हों पिछली बार।

बेख़ौफ़ है सवेरा रूहानी हैं रातें
मिलता हूँ खुद से करने दो बात।

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