कि मैं खुश हूँ, तू भी खुश रहना।
कमीने इश्क़ की दास्ताँ भी क्या कहूँ
सिद्दत से करो तो भी गुनाह लगता है
सोचता हूँ रोक लूँ हर बार खुद को
पर गुनाह फिर करता हूँ सजा पाने को।
कि मैं खुश हूँ, तू भी खुश रहना।
न जाने कितनी दुआओं में माँगा तुझे
अब तो ख़ुदा भी मुझसे खफ़ा लगता है
सोचता हूँ समझा लूँ हर बार खुद को
पर मिन्नतें फिर करता हूँ तुझे पाने को।
कि मैं खुश हूँ, तू भी खुश रहना।
हाँ दीवाना हूँ। इसका भी अपना मज़ा है,
ज़ख्म इतने हैं,दर्द भी अब मरहम लगता है
सोचता हूँ क़तल कर दूँ हर बार खुद को
पर फिर भी जिंदा रहता हूँ तुझे मनाने को।
कि मैं खुश हूँ, तू भी खुश रहना।
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