Here's I updated new 7 latest shayaries. Read and Share. ENJOY READINGS
Thursday, 29 January 2015
HUMANITY the perfect religion for me
Read here my new article HUMANITY the perfect religion for me and comment in my blog amazingthou.blogspot.com Also share this post via facebook and twitter etc. You can also tweet me about your thoughts @mhichahemtiwari
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END OF THE WORLD
Read here my latest poem END OF THE WORLD and send your reviews in comment. View the blog amazingthou.blogspot.com for more readings. Also share the post and pages via facebook and twitter.
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Sunday, 25 January 2015
REPUBLIC DAY SPECIAL
Congratulations to all..... It’s
the time to celebrate our republic day and we are too blissful on this marvellous
occasion. After all on this day in 1950 the constitution of India was finally
accepted by the assembly of 308 members and it was the foundation of Indian democracy.
After a long time of 2 years 11 months and 18 days the constitution was
prepared to fulfil the requirements of Indian democracy as per that time.
In present we have a lot of problems
regarding our constitution. And all Indians are merely aware of all these
things. Somewhere I felt the dual behaviour of the laws. As our constitution
gives all citizens the right of equality but in another face we are divided in many
categories and THE RESERVATION is given as per categories. It was only for the
backward people and only for 50 years which already has completed but still the
government is providing The Reservation to the people who are still undeveloped
as well as fully developed people of India. Many other categories are also
included under this RESERVATION SYSTEM recently. But I don’t know “why?”
Let me illustrate a simple example to
explain why this RESERVATION SYSTEM is a curse in modern India. Suppose we have
to make a bridge over the river to join to highways and for this purpose we
need an engineer. Now we have two candidates one is UR and other from reserved
category. And UR candidate far much better in his academia as well as knowledge
than the other reserved category candidate. But due to reservation quota
another candidate get the job. Now think for a while who was better out of them?
And who got the opportunity to build his career in engineering? What’s the
offence of the first one? Is this that he belongs to a UR CATEGORY? Why are they
considering our eligibility as per category not talent? I think this is one of
the causes which oppose the India to lead the world.
Second one, an ordinary citizen of
India or we can say a normal student having any police record, doesn’t get any
job while it’s not a law for the candidates in politics. In each and every
section we need required eligibility criteria but not in politics.
As so many objections are raised
earlier by several social committees and the responsible Indian public but it’s
not corrected yet.
We are here to celebrate our 66th
Republic Day and we are still waiting for the justified law and orders. It’s clarified
in the Indian constitution that Indian govt can change as necessary in the
Indian constitution so why is being late to correct it? Is it a wrong idea? Is
it not right to have the same law and order for all citizens?
On the grand occasion of our 66th
republic day I appeal to the govt. in the behalf of all citizens who are agreed
with the above facts, to take an action to make Indian Constitution stronger
and to lead India to the Title of JAGAD GURU.
It’s not an ordinary book
It’s the pride of India
It’s the respect for the people
It’s the respect for the country
It’s the savior of humanity
It’s the mass of the justice
It’s the feel of duties
It’s the theme of “Vasudhaiv Kutumbakam”
It’s the mode of love and affection
It’s the curse for the evils
It’s the song of freedom
It’s the soul of democracy
It’s the heart of India
Make it pure make it sharp
It’s the INDIAN
CONSTITUTION
Wednesday, 21 January 2015
RELIGION, A BUSINESS
It was the last day of the year 2014, my two friends (Arjun and Deepak) and I decided to go to Shirdi Temple. As three of we are working in a same company, we done the job that day and then we got ready to go to bus station after taking the dinner. Presently we are living in a village Kolad in district Raigad, Maharashtra...... TO READ MORE CLICK THE LINK http://amazingthou.blogspot.in/p/blog-page_17.html
YUVA PREM 'an article to all youth'
Here I added a new article 'Yuva Prem' ( hindi language). Hopefully you will really like it. You can follow this blog by email to get new poems and articles alert via mail.
प्रिय मित्रों! क्या आपने किसी से सच्चा प्रेम किया है? या क्या आप किसी से सच्चा प्रेम करते हैं? एक अन्य प्रश्न जो मैं आपसे करना चाहता हूँ वो ये है कि क्या वर्तमान में 'युवा-प्रेम' सच्चा प्रेम है? इन सभी प्रश्नों के जवाब आप सभी के पास होंगे और आप इन सभी चीजों से परिचित भी हैं| 'युवा-प्रेम' की जो छवि प्राचीनकाल में थी, वो आज कहीं न कहीं धुंधली होती जा रही है| अपने आप को छोड़कर अगर आप अन्य के प्रेम जीवन के बारे में बात करें तो वह कहीं न कहीं उस पराकाष्ठा को नहीं छू पाता जो 'प्रेम' शब्द में झलकती है| "अपने आप को छोड़कर.." से मेरे तात्पर्य यूँ था क्यूँकि बहुत ही कम ऐसे महानुभाव होंगे जो स्वयं में खोट निकालना पसंद करते हों; अपितु इसके दूसरो में खोट निकालना ज्यादा सहज महसूस होता होगा| वैसे आप मानव स्वभाव से भली-भाँती परिचित हैं, शायद मुझसे भी कई ज्यादा| अतः आप सहज ही मेरे कहने का तात्पर्य समझ पा रहे होंगे| अब पुनः ऊपर आपसे किये गए प्रश्नों के उत्तर देने को कहा जाये तो शायद आपके उत्तरों से आप पूर्णतः संतुष्ट न हो पाएँ| ऐसा इसलिए नहीं है कि आज के वर्तमान युग में सच्चा प्रेम विद्यमान नहीं है या सच्चा प्रेम करने वाले युवक और युवतियां नहीं है अपितु इसका कारण फिर से मानव स्वभाव ही है|.....
आदिकाल या प्राचीनकाल में प्रेम एक दैवीय अनुभूति थी जिसका चित्रण हमारे धर्म ग्रंथो या ऐतिहासिक रचनाओ में पूर्ण रूप से मिलता है| इस समय पुरा प्रेम के विषय में बात करने का एक ही उद्देश्य है कि हमारे मष्तिष्क में पुरा प्रेम की एक छवि उभरकर सामने आये| किसी साहित्यिक प्रेमी की अगर बात करें और प्राचीन प्रेम प्रसंग के परिदृशय को चित्रित करना चाहें तो एक प्राकृतिक वातावरण- लहलहाते खेत, घास के मैदान, बर्फीली चोटियाँ, शोर करता सागर, शांत मधुर कल-कल करता नदियों का पानी एवं लहरें, पक्षियों का सुगान, फूलों के बगीचे, चाँदनी रात और इन सभी के बीच एक युवती का अपने साथी से लज्जावान होना; अन्य कई ऐसी बाते जो प्रेम की एक सुन्दर कल्पना को संजोकर हमारे अंतर्मन को भाव-विभोर कर देती हैं एवं एक प्रेममयी भाव निखरकर हमारे हृदय में उद्दीप्त हो उठता है|
अब बात करते है वर्तमान 'युवा-प्रेम' की तो सीधी सी बात है: हर कोई व्यक्ति अपने कल्पना के सच्चे प्रेम को पाने के लिए प्रयत्नरत है और इसी प्रेम को पाने की होड़ में आज का 'युवा-प्रेम' मात्र उन ज्वारीय लहरों के समान हो गया है जो अत्यधिक शोर करते हुए एक विशाल ऊर्जा के साथ समुद्र की सतह से उठकर मानो अपने प्रियतम को पाने के लिए अत्यधिक उत्सुक एवं प्रयत्नशील होती है और कुछ समय बाद किनारे की एक ठोकर मात्र से ही अपनी संपूर्ण ऊर्जा एवं उत्साह खोकर वापस खाली हाथ लौट जाती है और अदृश्य हो जाती है, इस समंदर में मानो कभी वो थी ही नहीं| फिर कोई अन्य लहर फिर से वही प्रयत्न करती है, ये लहरें; और पुनः ठोकर खाकर अदृश्य हो जाना मानो जैसे युवा प्रेम का स्वभाव बन गया है|
कुछों का प्रेम उस नदी के तरह अस्थिर है जो किसी क्षेत्र को कुछ समय तक मिलने के बाद अचानक अपना मार्ग परिवर्तित कर लेती है और पुनः मुड़कर नहीं देखती| वर्तमान 'युवा-प्रेम' में झील के समान ठहराव वाला प्रेम बहुत ही कम देखने को मिलता है जो युग-युगांतर के लिए एक-दूसरे के लिए ही बने होते है और कभी एक-दूसरे से अलग नहीं होते| वर्तमान में हर दिन न जाने कितने प्रेमी अपने प्यार का इजहार करते हैं और कितने ही अपने प्रेम-सम्बन्धो को तोड़कर नए सम्बन्ध बनाने को अग्रसर होते हैं| यही तो हमारी फितरत है कि जब तक सब कुछ हमारे मनमुताबिक चलता है तो सब ठीक लगता है और जैसे ही कोई चीज हमारे खिलाफ होती है तो जो कल तक हमारा था आज हम उससे मुह मोड़ लेते हैं, ठीक उन्ही लेहरो कि तरह|
और ठीक ही तो है, जो हमारे मुताबिक नहीं जी सकता वो हमसे प्यार नहीं करता, उसे हमारे लिए बदलना चाहिए| सिर्फ प्यार के ढाई अक्षर कह देने मात्र से ही प्यार नहीं होता| अपने प्रेमी के लिए आपका दायित्व मायने रखता है और अपने दायित्वों का निर्वहन ही इस बात का प्रमाण है कि आप उससे प्यार करते है या नहीं| अपने प्रेमी से अपेक्षाएं रखना अच्छी बात है और उसका उन अपेक्षाओं को पूरा करना भी जरुरी है पर उसके लिए आपका फर्ज भी है और वो एक फर्ज ये है कि वो इन दायित्वों के लिए अकेला उत्तरदायी नहीं है आप भी हैं जिसे इन दायित्वों को पूरा करना है| सच्चे प्यार में कोई व्यक्ति किसी भी बात के लिए अकेला उत्तरदायी नहीं होता| यह एक प्रेमी जोड़ा है जो हर परिस्थितियों में साथ रहता है, एक दूसरे को समझता है और अपने प्रेम से परिस्तिथियों को अपने अनुकूल बनाता है|
आह! कितनी छोटी सी बात है ये और इसे समझने में न जाने क्यों हमें इतनी परेशानी होती है| जिंदगी गुजर जाती है रिश्ते बनते हैं और बिगड़ते हैं और जाने-अनजाने में अपने सच्चे प्यार को हम खो बैठते हैं| अगर ये छोटी सी बात अमल में लाएँ तो युवा प्रेमी कई मायनो में अपने सच्चे प्रेम को चरितार्थ कर पाएंगे| अब मैं अपनी पहले कही हुई बात दोहराता हूँ कि वर्तमान युग में भी सच्चे प्रेमी और सच्चा प्रेम विद्यमान है, पर जरुरत है तो मानव स्वभाव को समझने की, अपने प्रेमी को जानने की, उसके लिए वफ़ादार रहने की और उसकी खुशियों का ख्याल रखने की| सच्चे प्रेम का मतलब है दो आत्माओं का मिलन और जब दो आत्माएं एक हो जाती हैं तो उनका अलग होने का सवाल ही पैदा नहीं होता| वास्तव में 'दो जिश्म एक जान' वाली बात सच्चे प्रेम की आधारशिला है|
ये तो बात थी सच्चे प्रेम की पर मन बहुत ही कुंठित होता है जब समाज को भ्रष्ट प्रेम के जीवो द्वारा जकड़े हुए देखता हूँ| असल में इसका एक कारण आकर्षण और प्रेम में विभेद नहीं कर पाना है| चलो ये बात भी थोड़ी पचा ली जाये तो वो लोग जो सिर्फ प्यार के नाम पर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं उन्हें प्यार शब्द का मतलब भी नहीं पता और प्यार शब्द के आड़ में वो सिर्फ अपनी कामुकता को सार्थक करते हैं, उन्हें प्यार शब्द को बदनाम करने का कोई हक़ नहीं है| अगर कामुकता की बात आ ही गयी है तो एक तीसरा पहलू भी मैं अवश्यरूप से यहाँ पर उद्धृत करना चाहूँगा| हालाँकि वर्तमान युवा पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति से काफी प्रभावित है और उसी के प्रभाव में वे अपने मार्ग से भटक रहे हैं पर ये भटकाव छणिक है| जिस तरह से बीच समंदर में जहाज पर डेरा डाले हुए एक पक्षी पूरे आकाश का चक्कर लगाने के बाद फिर से उसी जहाज पर आकर ठहरता है, उसी तरह भूले-भटके युवा एक दिन स्वाभाविक रूप से सद्मार्ग पर अग्रसित होंगे| पर उन लोगो का सद्मार्ग पर लौटना नामुमकिन है जो कामुकतावश यह भी भूल गए है कि वो तो इंसान हैं, कोई शैतान नहीं| शायद आप समझ गए होंगे कि मैं किन लोगो की बात कर रहा हूँ| ये वही लोग हैं जिन्होंने कामुकतावश मानवता को शर्मशार किया है और यही वो लोग भी हैं जो 'युवा-प्रेम' के दुश्मन हैं| क्या हो गया इन लोगो को जो ये इतने विवश हो जाते हैं कि किसी नारी की इज्जत करना ही भूल जाते हैं| धिक्कार है इन लोगो को जो ये राक्षसों से भी नीच हरकत करने पर उतर आते हैं| रामायण में रावण ने सीता माँ का हरण अवश्य किया था पर नारी की मर्यादा का ख्याल तो उसने भी रखा था|
'युवा-प्रेम' के द्वारा मैं सिर्फ इस विषय पर अपने विचारों को आपके साथ साझा करने की कोशिश कर रहा हूँ| शायद कुछो को मेरी बातें अच्छी लगी और कुछो को नहीं भी पर इतना जरूर है कि कहीं न कहीं आप ये जरूर सोच रहे हैं कि क्या मेरा प्रेम सच्चा प्रेम है?
प्रिय मित्रों! क्या आपने किसी से सच्चा प्रेम किया है? या क्या आप किसी से सच्चा प्रेम करते हैं? एक अन्य प्रश्न जो मैं आपसे करना चाहता हूँ वो ये है कि क्या वर्तमान में 'युवा-प्रेम' सच्चा प्रेम है? इन सभी प्रश्नों के जवाब आप सभी के पास होंगे और आप इन सभी चीजों से परिचित भी हैं| 'युवा-प्रेम' की जो छवि प्राचीनकाल में थी, वो आज कहीं न कहीं धुंधली होती जा रही है| अपने आप को छोड़कर अगर आप अन्य के प्रेम जीवन के बारे में बात करें तो वह कहीं न कहीं उस पराकाष्ठा को नहीं छू पाता जो 'प्रेम' शब्द में झलकती है| "अपने आप को छोड़कर.." से मेरे तात्पर्य यूँ था क्यूँकि बहुत ही कम ऐसे महानुभाव होंगे जो स्वयं में खोट निकालना पसंद करते हों; अपितु इसके दूसरो में खोट निकालना ज्यादा सहज महसूस होता होगा| वैसे आप मानव स्वभाव से भली-भाँती परिचित हैं, शायद मुझसे भी कई ज्यादा| अतः आप सहज ही मेरे कहने का तात्पर्य समझ पा रहे होंगे| अब पुनः ऊपर आपसे किये गए प्रश्नों के उत्तर देने को कहा जाये तो शायद आपके उत्तरों से आप पूर्णतः संतुष्ट न हो पाएँ| ऐसा इसलिए नहीं है कि आज के वर्तमान युग में सच्चा प्रेम विद्यमान नहीं है या सच्चा प्रेम करने वाले युवक और युवतियां नहीं है अपितु इसका कारण फिर से मानव स्वभाव ही है|.....
युवा प्रेम के बारे में बहुत सी बातें हैं जो हम साँझा करेंगे पर इससे पहले युवा प्रेम को चित्रित करना अति आवश्यक है|
आदिकाल या प्राचीनकाल में प्रेम एक दैवीय अनुभूति थी जिसका चित्रण हमारे धर्म ग्रंथो या ऐतिहासिक रचनाओ में पूर्ण रूप से मिलता है| इस समय पुरा प्रेम के विषय में बात करने का एक ही उद्देश्य है कि हमारे मष्तिष्क में पुरा प्रेम की एक छवि उभरकर सामने आये| किसी साहित्यिक प्रेमी की अगर बात करें और प्राचीन प्रेम प्रसंग के परिदृशय को चित्रित करना चाहें तो एक प्राकृतिक वातावरण- लहलहाते खेत, घास के मैदान, बर्फीली चोटियाँ, शोर करता सागर, शांत मधुर कल-कल करता नदियों का पानी एवं लहरें, पक्षियों का सुगान, फूलों के बगीचे, चाँदनी रात और इन सभी के बीच एक युवती का अपने साथी से लज्जावान होना; अन्य कई ऐसी बाते जो प्रेम की एक सुन्दर कल्पना को संजोकर हमारे अंतर्मन को भाव-विभोर कर देती हैं एवं एक प्रेममयी भाव निखरकर हमारे हृदय में उद्दीप्त हो उठता है|
अब बात करते है वर्तमान 'युवा-प्रेम' की तो सीधी सी बात है: हर कोई व्यक्ति अपने कल्पना के सच्चे प्रेम को पाने के लिए प्रयत्नरत है और इसी प्रेम को पाने की होड़ में आज का 'युवा-प्रेम' मात्र उन ज्वारीय लहरों के समान हो गया है जो अत्यधिक शोर करते हुए एक विशाल ऊर्जा के साथ समुद्र की सतह से उठकर मानो अपने प्रियतम को पाने के लिए अत्यधिक उत्सुक एवं प्रयत्नशील होती है और कुछ समय बाद किनारे की एक ठोकर मात्र से ही अपनी संपूर्ण ऊर्जा एवं उत्साह खोकर वापस खाली हाथ लौट जाती है और अदृश्य हो जाती है, इस समंदर में मानो कभी वो थी ही नहीं| फिर कोई अन्य लहर फिर से वही प्रयत्न करती है, ये लहरें; और पुनः ठोकर खाकर अदृश्य हो जाना मानो जैसे युवा प्रेम का स्वभाव बन गया है|
कुछों का प्रेम उस नदी के तरह अस्थिर है जो किसी क्षेत्र को कुछ समय तक मिलने के बाद अचानक अपना मार्ग परिवर्तित कर लेती है और पुनः मुड़कर नहीं देखती| वर्तमान 'युवा-प्रेम' में झील के समान ठहराव वाला प्रेम बहुत ही कम देखने को मिलता है जो युग-युगांतर के लिए एक-दूसरे के लिए ही बने होते है और कभी एक-दूसरे से अलग नहीं होते| वर्तमान में हर दिन न जाने कितने प्रेमी अपने प्यार का इजहार करते हैं और कितने ही अपने प्रेम-सम्बन्धो को तोड़कर नए सम्बन्ध बनाने को अग्रसर होते हैं| यही तो हमारी फितरत है कि जब तक सब कुछ हमारे मनमुताबिक चलता है तो सब ठीक लगता है और जैसे ही कोई चीज हमारे खिलाफ होती है तो जो कल तक हमारा था आज हम उससे मुह मोड़ लेते हैं, ठीक उन्ही लेहरो कि तरह|
और ठीक ही तो है, जो हमारे मुताबिक नहीं जी सकता वो हमसे प्यार नहीं करता, उसे हमारे लिए बदलना चाहिए| सिर्फ प्यार के ढाई अक्षर कह देने मात्र से ही प्यार नहीं होता| अपने प्रेमी के लिए आपका दायित्व मायने रखता है और अपने दायित्वों का निर्वहन ही इस बात का प्रमाण है कि आप उससे प्यार करते है या नहीं| अपने प्रेमी से अपेक्षाएं रखना अच्छी बात है और उसका उन अपेक्षाओं को पूरा करना भी जरुरी है पर उसके लिए आपका फर्ज भी है और वो एक फर्ज ये है कि वो इन दायित्वों के लिए अकेला उत्तरदायी नहीं है आप भी हैं जिसे इन दायित्वों को पूरा करना है| सच्चे प्यार में कोई व्यक्ति किसी भी बात के लिए अकेला उत्तरदायी नहीं होता| यह एक प्रेमी जोड़ा है जो हर परिस्थितियों में साथ रहता है, एक दूसरे को समझता है और अपने प्रेम से परिस्तिथियों को अपने अनुकूल बनाता है|
आह! कितनी छोटी सी बात है ये और इसे समझने में न जाने क्यों हमें इतनी परेशानी होती है| जिंदगी गुजर जाती है रिश्ते बनते हैं और बिगड़ते हैं और जाने-अनजाने में अपने सच्चे प्यार को हम खो बैठते हैं| अगर ये छोटी सी बात अमल में लाएँ तो युवा प्रेमी कई मायनो में अपने सच्चे प्रेम को चरितार्थ कर पाएंगे| अब मैं अपनी पहले कही हुई बात दोहराता हूँ कि वर्तमान युग में भी सच्चे प्रेमी और सच्चा प्रेम विद्यमान है, पर जरुरत है तो मानव स्वभाव को समझने की, अपने प्रेमी को जानने की, उसके लिए वफ़ादार रहने की और उसकी खुशियों का ख्याल रखने की| सच्चे प्रेम का मतलब है दो आत्माओं का मिलन और जब दो आत्माएं एक हो जाती हैं तो उनका अलग होने का सवाल ही पैदा नहीं होता| वास्तव में 'दो जिश्म एक जान' वाली बात सच्चे प्रेम की आधारशिला है|
ये तो बात थी सच्चे प्रेम की पर मन बहुत ही कुंठित होता है जब समाज को भ्रष्ट प्रेम के जीवो द्वारा जकड़े हुए देखता हूँ| असल में इसका एक कारण आकर्षण और प्रेम में विभेद नहीं कर पाना है| चलो ये बात भी थोड़ी पचा ली जाये तो वो लोग जो सिर्फ प्यार के नाम पर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं उन्हें प्यार शब्द का मतलब भी नहीं पता और प्यार शब्द के आड़ में वो सिर्फ अपनी कामुकता को सार्थक करते हैं, उन्हें प्यार शब्द को बदनाम करने का कोई हक़ नहीं है| अगर कामुकता की बात आ ही गयी है तो एक तीसरा पहलू भी मैं अवश्यरूप से यहाँ पर उद्धृत करना चाहूँगा| हालाँकि वर्तमान युवा पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति से काफी प्रभावित है और उसी के प्रभाव में वे अपने मार्ग से भटक रहे हैं पर ये भटकाव छणिक है| जिस तरह से बीच समंदर में जहाज पर डेरा डाले हुए एक पक्षी पूरे आकाश का चक्कर लगाने के बाद फिर से उसी जहाज पर आकर ठहरता है, उसी तरह भूले-भटके युवा एक दिन स्वाभाविक रूप से सद्मार्ग पर अग्रसित होंगे| पर उन लोगो का सद्मार्ग पर लौटना नामुमकिन है जो कामुकतावश यह भी भूल गए है कि वो तो इंसान हैं, कोई शैतान नहीं| शायद आप समझ गए होंगे कि मैं किन लोगो की बात कर रहा हूँ| ये वही लोग हैं जिन्होंने कामुकतावश मानवता को शर्मशार किया है और यही वो लोग भी हैं जो 'युवा-प्रेम' के दुश्मन हैं| क्या हो गया इन लोगो को जो ये इतने विवश हो जाते हैं कि किसी नारी की इज्जत करना ही भूल जाते हैं| धिक्कार है इन लोगो को जो ये राक्षसों से भी नीच हरकत करने पर उतर आते हैं| रामायण में रावण ने सीता माँ का हरण अवश्य किया था पर नारी की मर्यादा का ख्याल तो उसने भी रखा था|
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