Friday 28 August 2015

रक्त से लिपटी है धरती

रक्त से लिपटी है धरती


रक्तसिंचित भूधरा है कांपता हर अंग है
रक्त से लिपटी है धरती लाल इसका रंग है
कुछ समय पहले यहाँ तो उड़ रही थी तितलियाँ
पर न जाने आज क्यों रो रहा ये कंठ है ...

बर्फ की छाती फटी है बह रही है धार जो
तीव्र नाद कर रही है वेग इसका मंद है
रिंस रहा है रक्त जो जननी माँ के गर्भ में
देख कर ये नरसंहार माँ की ममता दंग है ...

चील यूँ मंडरा रहे है लाशो के इन ढेर पे
चंचल मन शिथिल पड़ा है कैसा ये अचम्भ है
शुष्क ठंडी वादियों में कटती हुई पतंग है
रक्त से लिपटी धरा है लाल इसका रंग है ....




by
Hem Chandra Tiwari
'MHICHA'


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