रक्त से लिपटी है धरती
रक्तसिंचित भूधरा है कांपता हर अंग है
रक्त से लिपटी है धरती लाल इसका रंग है
कुछ समय पहले यहाँ तो उड़ रही थी तितलियाँ
पर न जाने आज क्यों रो रहा ये कंठ है ...
बर्फ की छाती फटी है बह रही है धार जो
तीव्र नाद कर रही है वेग इसका मंद है
रिंस रहा है रक्त जो जननी माँ के गर्भ में
देख कर ये नरसंहार माँ की ममता दंग है ...
चील यूँ मंडरा रहे है लाशो के इन ढेर पे
चंचल मन शिथिल पड़ा है कैसा ये अचम्भ है
शुष्क ठंडी वादियों में कटती हुई पतंग है
रक्त से लिपटी धरा है लाल इसका रंग है ....
रक्त से लिपटी है धरती लाल इसका रंग है
कुछ समय पहले यहाँ तो उड़ रही थी तितलियाँ
पर न जाने आज क्यों रो रहा ये कंठ है ...
बर्फ की छाती फटी है बह रही है धार जो
तीव्र नाद कर रही है वेग इसका मंद है
रिंस रहा है रक्त जो जननी माँ के गर्भ में
देख कर ये नरसंहार माँ की ममता दंग है ...
चील यूँ मंडरा रहे है लाशो के इन ढेर पे
चंचल मन शिथिल पड़ा है कैसा ये अचम्भ है
शुष्क ठंडी वादियों में कटती हुई पतंग है
रक्त से लिपटी धरा है लाल इसका रंग है ....
by
Hem Chandra Tiwari
'MHICHA'
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