Sunday 20 December 2015

दिल्ली का सब्जी बाज़ार


हर बुधवार में, रोज शाम, दिल्ली का सब्जी बाज़ार
दाएँ हाथ संग बाएँ हाथ भी,लगा दिल्ली का सब्जी बाज़ार
बीच सड़क पर चलते लोग, धक्कामुक्की और मंद चाल
पूछ- पूछ आगे बढ़ते, आलू, भिंडी और प्याज के दाम
यहीं लड़ते दिखते हैं धनवान दो पैसो का करते मोल
दुकानदार कुछ पैसे पाने को रखता सब्जी सोने की तोल
नारी दिखती आनन-फानन में, कुछ ताज़ी सभी पाने को
वहीं कुछ खरीदें कॅट्पीस सब्जियाँ, मास खर्च बचाने को
हफ्ते भर की ले लूँ भाजी,फिर अगले हफ्ते ये बाज़ार लगेगा
कहते हुए बोली एक महिला.” भैयाये कटहल कितने में देगा?”

चालीस के भाव से अच्छा है फूलगोभी ही ले लूँगी

पर भैया मैं बीस नही बस पंद्रह इसके दूँगी

नहीं बेहन जी महँगाई है, शाक उपज नहीं है

धनिया-मिर्ची भी डाले देता हूँ बस दाम सिर्फ़ वही है

मोल भाव कर उठाया थैला और कंधे पर लटकाया

सोच समझकर चतुराई से नारी ने सौ का नोट बढ़ाया

अरे बहना! छुट्टा देदो; मैं छुट्टा कहाँ से दूँगा?

छुट्टा लाने बैठा तो ,ये भाजी कैसे बेचुँगा?

कहीं से लाकर देदो भैया, छुट्टा मेरे पास नहीं हैं

या एक किलो बांधो कटहल पर तीस का दाम सही है

और साथ में बांधो दो किलो आलू और एक किलो प्याज भी तोलो
Tu
कितना होता है जोड़ लगाओ और थोड़ा ठीक दाम भी बोलो

बीस की गोभी,तीस का कटहल और आलू का तीस लगाया

पच्चीस का प्याज भी डाला तो एक सौ पाँच जोड़कर आया

फिर पाँच रुपये देने को नारी ने दूसरा सौ का नोट बढ़ाया

बाद में ले लूँगा बहनजीकहकर दुकानदार ने, थैला उसको पकड़ाया|


ऊफ्फ!! आज ना जाने सुनसान गली में क्यूँ हाहाकार मचा है?

बुधवार आज सड़ककिनारे सब्जी बाजार सज़ा है|

बुधवार आज सड़ककिनारे सब्जी बाजार सज़ा है|
                                                                                                                                #mhicha                                                                                                                                                                                                                       

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