Monday 23 May 2016

किन्नरों का जबरन पैसे माँगना कितना जायज?



किन्नरों का जबरन पैसे माँगना कितना जायज?

बचपन से आज तक जो पङा, जो देखा और जो समझा उसी आधार पर आपसे ये बातें साझा कर रहा हूँ। हमेशा परिस्थितियाँ समान नहीं रहती। किन्नरों के लैंगिक दोष को तो बदला नहीं जा सकता पर शायद उनके जीवन यापन के तरीकों में बदलाव आ सके। कई बाहरी देशों में तो उनका सामाजिक स्तर काफी प्रेरणाप्रद है अन्य देशों के लिए। भारत की अगर बात करें तो उनका स्तर काफी असंतोषजनक है हालाँकि कई ऐसे लोग हैं जो एक किन्नर होकर सहजता से समाज में जीवन यापन करते हैं। हमारे बढप्पन और घृणित व्यवहार के कारण समाज का एक अंग भंग सा जान पङता है। अपनी कमजोरी और हमारे अंधविश्वास एवं कायरता को अपनी ताकत बना चुके किन्नर आज सहजता से कभी-कभी अमानवीय ढंग से भी हमारा आर्थिक शोषण करते हैं।

मैंने अपने घर-समाज में लोगों को कहते सुना है कि अगर इन्हें नाराज किया तो ये बद्दुआयें देते हैं जो कई मायनो में सच साबित होती हैं। नादान दिल सब सच मान बैठा और निकल पङा जंजालों के सफर में- इस मायाजाल की दुनिया में। जब माँ का आँचल दूर गाँव में छोङ मैं शहरों की गर्मी खा रहा था और खुद का पसीना पी रहा था, हमेशा अपने खर्च काटकर किन्नरों को खुश रखने की कोशिश करता रहता। पर एक बार जब मैं पहली बार दिल्ली से मुम्बई के सफर में निकला तो कुछ अनुभव बदल गयें। ट्रेन में सफर करते हुए जब एक किन्नर पैसे माँगने मेरे पास आया तो मैंने झट से बीस रूपये का नोट निकालकर दे दिया। अभी ट्रेन कहीं बीच के जंगलों के पास ही रुकी थी। मैंने देखा उन्हीं किन्नरों का समूह पटरी के पास बैठकर दारू पीने लगे और जुआ खेलने लगे। अब अफसोस सा हुआ खुद की बेवकूफी पर। अपनी मेहनत की कमाई न जाने आज तक कैसे लोगों को देता आया था मैं।

हाल ही की एक घटना जब एक माह पूर्व मुझे किसी सामाजिक कार्य से दिल्ली जाना पङा। रिजर्वेसन न हो पाने के कारण सामान्य वर्ग के कोच में सफर करने निकल गया। आगे चलकर ठसाठस भरी हुई ट्रेन में जब दुवाओं के ठेकेदार पैसे माँगने मेरे पास आये तो मैंने तो साफ शब्दों में मना कर दिया। मेरे सामने वाली बर्थ पर बैठे एक युवक ने भी जब मना किया तो वो किन्नर अपनी साङी उठाकर उसके मुँह के पास ले गयी और अभद्र भाषा बोलने लगी। यहाँ तक उसने ठीक उसके बगल में बैठी एक महिला का भी लिहाज नहीं किया।

दोस्तों अपनी मेहनत की कमाई को यूँ ही जाया न होने दें। दान पुण्य करें पर सोच समझकर। अपने अनुभव एवं विचार साझा जरूर करें।

#mhicha

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