Wednesday, 21 September 2016

उरी के वीर शहीदों को श्रद्धांजलि

दिल मिलाने चले थे तब, अब पूरी घाटी दहल उठी
पुरानी राख बुझी नहीं कि और चितायें जल उठी
फिर अमन के फूल बरसेंगे कि पाकिस्तान बदल गया
जख्म पर जख्म भूले नहीं, एक ताजा जख्म और मिल गया
खैर,
सियासी रंगत तो दिखती रहेगी

न जाने कितनी और लाशें बिछती रहेगी
हिसाब लगा सको तो लगा लो
             'शहादत' का
हर बार मेरी कलम लिखती रहेगी।

मरे नहीं जवान, कतले-ए-आम हुआ
और खामोशी लौट आयी
मेरे देश की न जाने ये कैसी बदनशीबी छायी
हजारों अस्त्र- शस्त्र भी व्यर्थ हैं अब जो
उनकी मौत का प्रतिशोध न ले पायी,
तब,
लहु भी खौलकर वाष्प हो गया
चिंगारी भी न जला सका
नियमादेश के बोझ तले, खुद की रक्षा न कर सका।

अरे! आधा तो पहले ही छोङा, अब आधा न सम्भाल सके
गद्दार आवारा सांडों को तुम नकेल न डाल सके
क्या मजबूरी? क्या बाधा?  जो अब तक न उपचार किया
शस्त्र उठा प्रतिशोध लो उनसे जिसने भीषण नरसंहार किया

सीमा पर घुसकर जो कातिल अपनी सीमा लांघ गये
क्यों न जवाब दो मुँहतोङ? क्या हाथ तुम्हारे बाँध दिये?
ये जन्म तुम्हारा, जन्मभूमि भी, फिर किसका खौफ सता रहा?
ऐ भारत के वीर सपूतों! ये भारत तुम्हें बुला रहा।

उठा लो अपनी बंदूकें, छलनी कर दो सीना दुश्मन का
सच्ची श्रद्धांजलि शहीदों को, तब बोझ मिटेगा निज मन का
जो विघ्न डाले इस कार्य में, उसको भी धूमिल कर डालो
ऐ भारत के वीर सपूतों! इतिहास पुन: तुम रच डालो।

By
Hem Chandra Tiwari
Mhicha

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