Tuesday, 21 November 2017

दैत्य!!!







आज मैं एक यौवन के बाग में पहुँचा। तरह- तरह के मनभावन खिले थे चारो ओर और वह बाग़ किसी स्वर्ग से कम नहीं था। नन्ही सी कलियाँ अपने यौवन सौन्दर्य को और अधिक निखारने को लालायित थीं। मैं बाग़ में आगे की ओर चल दिया और उस बाग़ की सुंदरता को निहारने लगा। तभी अचानक मेरी नज़र उस बाग़ के माली पर पड़ी जिसके चेहरे पर चिंताएं साफ़ देखी जा सकती थी।
 वह काफी लाचार दिखाई दे रहा था। मैं अचंभित था कि यने सुन्दर बाग़ में कोई इतना उदास कैसे हो सकता है? और वो भी वह व्यक्ति जिसने उस बाग़ को विकसित करने में अपना पूर्ण जीवन लगा दिया। मैंने उस व्यक्ति से उसकी परेशानी का कारण पूछा। उससे पता चला कि दैत्यों की एक टोली उसकर बाग़ के सौंदर्य को नष्ट कर रही थी। हर रोज़ कोई न कोई कली उनकी हैवानियत की भेंट चढ़ जाती। उस बाग़ का सौंदर्य उन दैत्यों के पैरों तले कुचला जा रहा था। यह सब सुनना वाकई बहुत दुखदायी और हृदयविदारक था। तभी किसी के आने की आहट सुनाई दी। अरे! यह तो वही राक्षसों की टोली थी जो इंसानो की शक्ल वाले थे। अब मैं निराश था और शर्मिंदा भी....

#mhicha

Saturday, 18 November 2017

क्यों? क्या घिन आती है हमसे?

क्यों? क्या घिन आती है हमसे?
हमारा तो काम यही है, 
थककर चूर होते हैं जब
आराम यहीं है।


बंद चार दिवारों में रहते हो
हमे दुत्कारते हो
खिड़की से कूड़ा फेंक सड़क पर
रौब झाड़ते हो
जब देखते हो सड़क पर
पैरो की धूल समझते हो
हमें मवेशी से भी घटकर
क्यों मानते हो???

कल ही तो एक कुकुर
और लेकर आ गए
सेल्फी अपडेट करके
सोशल मीडिया पर छा गए।
हमसे पूछने हाल कभी
क्यों न आते हो तुम
क्यों कभी हमें अपना
घर ले जाते हो तुम????

सब गंदगी तुम्हारी 
हम साफ़ करते हैं।
तुम ही बोलो 
क्या कोई पाप करते हैं।
मिलते हो जिससे भी
कहते हो कि 
हमारा तो यही धंधा है
दिल पर हाथ रख कह दो
हम गंदे हैं या कौन गन्दा है???

सफ़ेद कपड़ो की चमक तुम्हारी
सब कुछ तो कह गयी
दिल की बातें हमारे दिल में ही रह गयी
फिर क्यों न सोऊँ यहीं
कूड़े के ढेर में
माने मेरे सपनो की दुनिया
है फिर से ढ़ह गयी।
#mhicha

अगर इन पंक्तियों में आपको इन अभावग्रस्त बच्चो के मन की बात सुनाई दे तो कृपा करके अपने सभी मित्रों के साथ साझा करें एवं उनसे आग्रह करें कि कभी इन बच्चों को देखकर मुँह न फेरें और न ही इन्हें लताड़ लगाएं अपितु इनके पास जाकर हरसंभव मदद करने की कोशिश करें और खुद भी ऐसा करें।

विनम्र निवेदन!
हेम चंद्र तिवारी

Monday, 13 November 2017

बाल दिवस

आज का दिन बहुत खास है। 14 नवंबर, बाल दिवस का दिन। सभी लोग बधाइयाँ देंगे एक-दूसरे को। विद्यालयों में तरह-तरह के कार्यक्रम होंगे। नन्हे-मुन्हे बच्चे जो पहले से ही संपन्न परिवारों से हैं उन्हें उपहार दिए जाएंगे और शायद आज का दिन उन गरीब बेसहारा बच्चो की भी ईद साबित हो जाये जिन्हें दो वक़्त का भोजन नसीब नहीं होता। कितना अच्छा लगता है मन को यह सोचकर कि आज बाल दिवस के दिन किसी बेसहारा बच्चे की मदद कर दी।

फिर आएगा कल का दिन 15 नवंबर। और फिर क्या? सब पहले जैसा। सड़क पर मांगने वाले बच्चों का हुजूम और उन्हें भीख देने वाले और फटकारने वाले आप और मुझ जैसे ही लोग जिन्होंने एक दिन पहले ही बाल दिवस मनाया था, सब कुछ भूलकर, अपने कार्यो में फिर से व्यस्त।

आओ
अबकी बार
हर दिन एक बाल दिवस हो
हर दिन उस गरीब बालक के जीवन में दिवाकर प्रभात फेरी लगाये
खुशहाली उसके चेहरे पर और मुस्कान होठो पर हो
दरिद्रता उससे कोसो दूर हो
शिक्षा, आहार, स्वास्थ्य एवं आशियाना उसके साथी बने
हँसी की किलकारियों से हर वो सड़क गूंजे जहाँ कभी दरिद्रता की करुण आवाज़ दुहाई देती थी

समस्त नागरिको से अपील है कि हमेशा जब किसी ऐसे बेसहारा और दरिद्र बच्चे को सड़को पर देखें तो उसे अनदेखा न करें या उसकी थोड़ी सहायता करके अपने दायित्वों की खानापूर्ति न करें। वरन स्थानीय लोगो की मदद से एवम स्वयं के प्रयासों से उसे किसी बाल संस्था या प्रशासन के सुपुर्द कर मानवता का परिचय दें।

हेम चंद्र तिवारी की ओर से आप सभी मित्रों को बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

कई भाई लोग साथ आ रहे हैं, अच्छा लग रहा है, एक नया भारत दिख रहा है। आजाद हिंद के सपनो का अब फिर परचम लहरा है। उन्नति के शिखरों में अब राज्य ह...