आज मैं एक यौवन के बाग में पहुँचा। तरह- तरह के मनभावन खिले थे चारो ओर और वह बाग़ किसी स्वर्ग से कम नहीं था। नन्ही सी कलियाँ अपने यौवन सौन्दर्य को और अधिक निखारने को लालायित थीं। मैं बाग़ में आगे की ओर चल दिया और उस बाग़ की सुंदरता को निहारने लगा। तभी अचानक मेरी नज़र उस बाग़ के माली पर पड़ी जिसके चेहरे पर चिंताएं साफ़ देखी जा सकती थी।
वह काफी लाचार दिखाई दे रहा था। मैं अचंभित था कि यने सुन्दर बाग़ में कोई इतना उदास कैसे हो सकता है? और वो भी वह व्यक्ति जिसने उस बाग़ को विकसित करने में अपना पूर्ण जीवन लगा दिया। मैंने उस व्यक्ति से उसकी परेशानी का कारण पूछा। उससे पता चला कि दैत्यों की एक टोली उसकर बाग़ के सौंदर्य को नष्ट कर रही थी। हर रोज़ कोई न कोई कली उनकी हैवानियत की भेंट चढ़ जाती। उस बाग़ का सौंदर्य उन दैत्यों के पैरों तले कुचला जा रहा था। यह सब सुनना वाकई बहुत दुखदायी और हृदयविदारक था। तभी किसी के आने की आहट सुनाई दी। अरे! यह तो वही राक्षसों की टोली थी जो इंसानो की शक्ल वाले थे। अब मैं निराश था और शर्मिंदा भी....
#mhicha
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